सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१३३)

गई और बराबर काम करती रही। अन्त में न जाने कहां से उस ने कुछ प्राचीन सतियों के कुछ वर्णन सुने और उसे सती होने की धुन सवार होगई। एक प्रकार के उन्माद में ग्रसित होकर उसने अपने सती होने की इच्छा बल-पूर्वक सब पर प्रकट कर दी।

यह जानकर उसकी सास ने प्रसन्न होकर कहा—"तू धन्य है, जा मेरे पुत्र को सुखी कर।" उसके लिए ब्याह के वस्त्र मंगवाये गये और ख़ूब गहने पहिनाये गये। गाँव भर में चर्चा फैल गई। उसे गा बजाकर जंगल में लेगये। उसी के पाथे हुये उपलों से चिता चुनी और उसे उस पर सुला दिया गया। उसका एक हाथ और सिर छोड़ सारा शरीर ढाँप दिया गया था। हाथ में फूंस का पूला दे उसमें आग लगादी। क्रिया कर्म वाले पण्डित ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने और घी डालने लगे—ज़ोर के बाजे बजने लगे। और जय जय कार होने लगा। धुऐं का तूमार उठ खड़ा हुआ इस प्रकार वह अभागिनी जलकर ख़ाक होगई। और सती कहलाई। पीछे पुलिस ने बहुत से लोगों का चालान किया।

श्रीमती डा॰ मुथ्युलक्ष्मी रेड्डी ने एक बार व्यवस्थापक सभा में कहा था—"हिन्दू क़ानून के अनुसार एक साथ कई स्त्रियों से विवाह किया जा सकता है इस लिये जब पति लड़की को अपने घर बुलाना चाहे उसके माता पिता हरगिज़ इनकार नहीं कर सकते क्योंकि सदैव ही इस बात का भय बना रहता है कि लड़के की दूसरी शादी कर दी जायगी।"