क़ुस्तुंतुनिया
कोन्स्तान्तीनोपोलिस Κωνσταντινούπολις (यूनानी) Constantinopolis (साँचा:ISO 639 name la) | |
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क़ुस्तुंतुनिया का मानचित्र | |
वैकल्पिक नाम | बाइज़ेंटाइन (पुराना ग्रीक नाम), मिकलगार्ड/मिकलग्राथ (ओल्ड नोर्स), त्सारिग्राद (स्लावी), बसिलूओसा ("शहरों की रानी"), मेगालोपोलिस ("महान शहर") |
स्थान | इस्तांबुल, इस्तांबुल प्रांत, तुर्की |
क्षेत्र | थ्रेस |
निर्देशांक | 41°00′49″N 28°57′18″E / 41.01361°N 28.95500°Eनिर्देशांक: 41°00′49″N 28°57′18″E / 41.01361°N 28.95500°E |
प्रकार | शाही नगर |
क्षेत्रफल |
6 कि॰मी2 (65,000,000 वर्ग फुट) कॉन्सटेंटनियाई दीवारों के भीतर स्थित 14 कि॰मी2 (150,000,000 वर्ग फुट) थियोडोसियन दीवारों के भीतर स्थित |
इतिहास | |
निर्माता | कोन्स्टान्टिन प्रथम |
स्थापित | 330 ई. |
काल | गत पुरातन काल से गत मध्यकालिन युग |
संस्कृति | रोम, बाइज़ेंटाइन |
क़ुस्तुंतुनिया या कोंस्तांदीनूपोलीस (प्राचीन यूनानी : Κωνσταντινούπολις) बोस्पोरुस जलसन्धि और मारमरा सागर के संगम पर स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, जो रोमन, बाइज़ेंटाइन, और उस्मानी साम्राज्य की राजधानी थी। 324 ई. में प्राचीन बाइज़ेंटाइन सम्राट कोन्स्टान्टिन प्रथम द्वारा रोमन साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में इसे पुनर्निर्मित किया गया, जिसके बाद इन्हीं के नाम पर इसे नामित किया गया।
परिचय
[संपादित करें]इस शहर की स्थापना रोमन सम्राट कोन्स्टान्टिन महान ने 328 ई. में प्राचीन शहर बाइज़ेंटाइन को विस्तृत रूप देकर की थी। नवीन रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ 11 मई 330 ई. को हुआ था। यह शहर भी रोम के समान ही सात पहाड़ियों के बीच एक त्रिभुजाकार पहाड़ी प्रायद्वीप पर स्थित है और पश्चिमी भाग को छोड़कर लगभग सभी ओर जल से घिरा हुआ है। रूम सागर और काला सागर के मध्य स्थित बृहत् जलमार्ग पर होने के कारण इस शहर की स्थिति बड़ी महत्वपूर्ण रही है। इसके यूरोप को एशिया से जोड़ने वाली एक मात्र भूमि-मार्ग पर स्थित होने से इसका सामरिक महत्व था। प्रकृति ने दुर्ग का रूप देकर उसे व्यापारिक, राजनीतिक और युद्धकालिक दृष्टिकोण से एक महान साम्राज्य की सुदृढ़ और शक्तिशाली राजधानी के अनुरूप बनने में पूर्ण योग दिया था। निरंतर सोलह शताब्दियों तक एक महान साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसकी ख्याति बनी हुई थी। सन् 1930 में इसका नया तुर्कीयाई नाम इस्तानबुल रखा गया। अब यह शहर प्रशासन की दृष्टि से तीन भागों में विभक्त हो गया है इस्तांबुल, पेरा-गलाटा और स्कूतारी। इसमें से प्रथम दो यूरोपीय भाग में स्थित हैं जिन्हें बासफोरस की 500 गज चौड़ी गोल्डेन हॉर्न नामक सँकरी शाखा पृथक् करती है। स्कूतारी तुर्की के एशियाई भाग पर बासफोरस के पूर्वी तट पर स्थित है।
यहाँ के उद्योगों में चमड़ा, शस्त्र, इत्र और सोनाचाँदी का काम महत्वपूर्ण है। समुद्री व्यापार की दृष्टि से यह अत्युत्तम बंदरगाह माना जाता है। गोल्डेन हॉर्न की गहराई बड़े जहाजों के आवागमन के लिए भी उपयुक्त है और यह आँधी, तूफान इत्यादि से पूर्णतया सुरक्षित है। आयात की जानेवाली वस्तुएँ मक्का, लोहा, लकड़ी, सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े, घड़ियाँ, कहवा, चीनी, मिर्च, मसाले इत्यादि हैं; और निर्यात की वस्तुओं में रेशम का सामान, दरियाँ, चमड़ा, ऊन आदि मुख्य हैं।
इतिहास
[संपादित करें]स्थापना
[संपादित करें]क़ुस्तुंतुनिया की स्थापना ३२४ में रोमन सम्राट कोन्स्टान्टिन प्रथम (२७२-३३७ ई) ने पहले से ही विद्यमान शहर, बायज़ांटियम के स्थल पर की थी,[1] जो यूनानी औपनिवेशिक विस्तार के शुरुआती दिनों में लगभग ६५७ ईसा पूर्व में, शहर-राज्य मेगारा के उपनिवेशवादियों द्वारा स्थापित किया गया था।[2] इससे पूर्व यह शहर फ़ारसी, ग्रीक, अथीनियन और फिर ४११ ईसापूर्व से स्पार्टा के पास रही।[3] १५० ईसापूर्व रोमन के उदय के साथ ही इस पर इनका प्रभाव रहा और ग्रीक और रोमन के बीच इसे लेकर सन्धि हुई,[4] सन्धि के अनुसार बायज़ांटियम उन्हें लाभांश का भुगतान करेगा बदले में वह अपनी स्वतंत्र स्थिति रख सकेगा जोकि लगभग तीन शताब्दियों तक चला।[5]
क़ुस्तुंतुनिया का निर्माण ६ वर्षों तक चला, और ११ मई ३३० को इसे प्रतिष्ठित किया गया।[1][6] नये भवनें का निर्माण बहुत तेजी से किया गया था: इसके लिये स्तंभ, पत्थर, दरवाजे और खपरों को साम्राज्य के मंदिरों से नए शहर में लाया गया था।
महत्त्व
[संपादित करें]संस्कृति
[संपादित करें]पूर्वी रोमन साम्राज्य के अंत के दौरान पूर्वी भूमध्य सागर में कांस्टेंटिनोपल सबसे बड़ा और सबसे अमीर शहरी केंद्र था, मुख्यतः ईजियन समुद्र और काला सागर के बीच व्यापार मार्गों के बीच अपनी रणनीतिक स्थिति के परिणामस्वरूप इसका काफ़ी महत्त्व बढ़ गया। यह एक हजार वर्षों से पूर्वी, यूनानी-बोलने वाले साम्राज्य की राजधानी रही। मोटे तौर पर मध्य युग की तुलना में अपने शिखर पर, यह सबसे धनी और सबसे बड़ा यूरोपीय शहर था, जोकि एक शक्तिशाली सांस्कृतिक उठ़ाव और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में आर्थिक जीवन पर प्रभावी रहा। आगंतुक और व्यापारी विशेषकर शहर के खूबसूरत मठों और चर्चों को, विशेष रूप से, हागिया सोफिया, या पवित्र विद्वान चर्च देख कर दंग रह जाते थे।
इसके पुस्तकालय, ग्रीक और लैटिन लेखकों के पांडुलिपियों के संरक्षण हेतु विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहे, जिस समय अस्थिरता और अव्यवस्था से पश्चिमी यूरोप और उत्तर अफ्रीका में उनका बड़े पैमाने पर विनाश हो रहा था। शहर के पतन के समय, हजारों शरणार्थियों द्वारा यह पांडुलिपी इटली लाये गये, और पुनर्जागरण काल से लेकर आधुनिक दुनिया में संक्रमण तक इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अस्तित्व से कई शताब्दियों तक, पश्चिम पर इस शहर का बढ़ता हुआ प्रभाव अतुलनीय रहा है। प्रौद्योगिकी, कला और संस्कृति के संदर्भ में, और इसके विशाल आकार के साथ, यूरोप में हजार वर्षो तक कोई भी क़ुस्तुंतुनिया के समानांतर नहीं था।
वास्तु-कला
[संपादित करें]बाइज़ेंटाइन साम्राज्य ने रोमन और यूनानी वास्तुशिल्प प्रतिरूप और शैलियों का इस्तेमाल किया था ताकि अपनी अनोखी शैली का निर्माण किया जा सके। बाइज़ेंटाइन वास्तु-कला और कला का प्रभाव पूरे यूरोप में कि प्रतियों में देखा जा सकता है। विशिष्ट उदाहरणों में वेनिस का सेंट मार्क बेसिलिका, रेवेना के बेसिलिका और पूर्वी स्लाव में कई चर्च शामिल हैं। इसकी शहर की दीवारों की नकल बहुत ज्यादा की गई (उदाहरण के लिए, कैरर्नफॉन कैसल देखें) और रोमन साम्राज्य की कला, कौशल और तकनीकी विशेषज्ञता को जिंदा रखते हुए इसके शहरी बुनियादी ढांचे को मध्य युग में एक आश्चर्य के रूप में रहा। तुर्क काल में इस्लामिक वास्तुकला और प्रतीकों का इस्तेमाल किया हुआ।
धर्म
[संपादित करें]कॉन्स्टेंटाइन की नींव ने क़ुस्तुंतुनिया को बिशप की प्रतिष्ठा दी, जिसे अंततः विश्वव्यापी प्रधान के रूप में जाना जाने लगा और रोम के साथ ईसाई धर्म का एक प्रमुख केंद्र बना गया। इसने पूर्वी और पश्चिमी ईसाई धर्म के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक मतभेद बढ़ाने में योगदान दिया और अंततः बड़े विवाद का कारण बना, जिसके कारण 1054 के बाद से पूर्वी रूढ़िवादी से पश्चिमी कैथोलिक धर्म विभाजित हो गये। क़ुस्तुंतुनिया, इस्लाम के लिए भी महान धार्मिक महत्व का है, क्योंकि क़ुस्तुंतुनिया पर विजय, इस्लाम में अंत समय के संकेतों में से एक है। दरअसल हदीशों के अनुसार ये वो जगह है जो दुनिया के अंत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, हदीशो में जिस जगह को कुस्तुनतुनिया कहा गया है उसे आज इस्तांबुल , तुर्की कहा जाता है। Written by MD kasli
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ Mango, Cyril. Constantinople. पपृ॰ 508–512.
- ↑ Pliny, IV, xi
- ↑ Thucydides, I, 94
- ↑ Harris, 2007, pp.24–25
- ↑ Harris, 2007, p.45
- ↑ Commemorative coins that were issued during the 330s already refer to the city as Constantinopolis (see, e.g., Michael Grant, The climax of Rome (London 1968), p. 133), or "Constantine's City". According to the Reallexikon für Antike und Christentum, vol. 164 (Stuttgart 2005), column 442, there is no evidence for the tradition that Constantine officially dubbed the city "New Rome" (Nova Roma). It is possible that the Emperor called the city "Second Rome" (यूनानी : Δευτέρα Ῥώμη, Deutéra Rhōmē) by official decree, as reported by the 5th-century church historian Socrates of Constantinople: See Names of Constantinople.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Constantinople, from History of the Later Roman Empire, by J.B. Bury
- History of Constantinople from the "New Advent Catholic Encyclopedia."
- Monuments of Byzantium - Pantokrator Monastery of Constantinople
- Constantinoupolis on the web Select internet resources on the history and culture
- Info on the name change from the Foundation for the Advancement of Sephardic Studies and Culture
- Welcome to Constantinople, documenting the monuments of Byzantine Constantinople
- Byzantium 1200, a project aimed at creating computer reconstructions of the Byzantine monuments located in Constantinople as of the year 1200 AD.