मातंगी
इस लेख को विकिफ़ाइ करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि यह विकिपीडिया के गुणवत्ता मानकों पर खरा उतर सके। कृपया प्रासंगिक आन्तरिक कड़ियाँ जोड़कर, या लेख का लेआउट सुधार कर सहायता प्रदान करें। अधिक जानकारी के लिये दाहिनी ओर [दिखाएँ] पर क्लिक करें।
|
मातंगी | |
---|---|
काले जादू, वाणी और तंत्र विद्या की देवी | |
संबंध | महाविद्या, पार्वती, देवी सरस्वती का तांत्रिक रूप |
निवासस्थान | मणिद्वीप |
अस्त्र | वीणा, खडग, खोपड़ी और वर मुद्रा |
जीवनसाथी | मातंग (शिव का अवतार) |
सवारी | कमल |
मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। यह हरा वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाओं में इन्होंने कपाल(जिसके ऊपर तोता बैठा), वीणा,खड्ग वेद धारण किया है। मां मातंगी तांत्रिकों की सरस्वती हैं। पलास और मल्लिका पुष्पों एवं युक्त बेलपत्रों के द्वारा पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार मां के 3 ओजपूर्ण नेत्र हैं। माता रत्नों से जड़े सिंहासन पर आसीन हैं। देवी मातंगी के संग तोता भी है जो वाणी और वाचन का प्रतीक माना जाता है। मातंगी देवी इंद्रजाल और जादू के प्रभाव को नष्ट करती हैं। देवी को वचन, तंत्र और कला की देवी भी माना गया है। मातंगी ही एक ऐसी देवी है जिन्हें जूठन का भोग लगाया जाता है ऐसा कहते हैं कि मातंगी देवी को जुठा किये बिना भोग नहीं लगता है । मातंगी देवी समता की सूचक है ।
शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनकी जयंती आती है। एक बार भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी के साथ कैलाश पर्वत भगवान शिव व माता पार्वती से मिलने गए। भगवान विष्णु अपने साथ भोजन भी लेकर गए जिसे उन्होंने शिव व पार्वती को खाने के लिए दिया। जब शिव व पार्वती उस भोजन को खाने लगे तो थाली में से भोजन का कुछ अंश धरती पर गिर गया।
भोजन के उन्हीं झूठन अंश में से माँ मातंगी का जन्म हुआ। इसी कारण मातारानी के मातंगी रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता हैं। झूठन में से उत्पन्न होने के कारण उनका एक नाम उच्छिष्ट मातंगिनी भी पड़ा अर्थात जिसे बचे हुए भोजन या झूठे का भोग लगाया जाये। ऐसा कहते हैं,जब माता पार्वती को चंडाल स्त्रीऔ द्वारा अपने जुठन का भोग लगाया तब सभी देवगण और शिव जी के भूतादिकगण इसका विरोध करने लग गए लेकिन माता पार्वती ने चंडालिया की श्रद्धा को देख कर मातंगी का रूप लेकर उनके द्वारा चढ़ाए गए जूठन को ग्रहण किया ।
कहते हैं कि देवी मातंगी हनुमाजी और शबरी के गुरु मतंग ऋषि की पुत्री थीं। मतंग ऋषि के यहां माता दुर्गा के आशीर्वाद से जिस कन्या का जन्म हुआ था वह मातंगी देवी थी। यह देवी भारत के आदिवासियों की देवी है। दस महाविद्याओं में से एक तारा और मातंग देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं। बौद्ध धर्म में मातंगी को मातागिरी कहते हैं।