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gR^ihNAtyAtmaprakAshAnnijaviShayamato.adhyAtmamantrendriyam
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sUryAdyantaH pravR^ittim prajanayati tatashchAdidaivaM taduktam |
rUpAdyaM chAdhibhUtaM yadanugatamanudhyeyamAtmasvarUpam
tenAnte tasya tiShThAmyahamabhimukhamityaShTha me
spaShTamAha ||
श्री लललता सहस्त्रनाम का लिशेष महत्व है ,श्री लललता सहस्त्रनाम के पाठ से इष्टदे िी
प्रसन्न हो जाती है और उपासक की कामना को पूर्ण करती है ,यलद उपासक लनत्य
पाठ न कर सके तो पूण्य लदिसोों पर सोंक्ाोंलत पर दीक्षा लदिस पर,पूलर्णमा
पर,शुक्िार को अपने जन्मलदिस पर,
दलक्षर्ायन ,उत्तरायर् के समय ,निमी चतुदणशी आलद को अिश्य पाठ करें ।पूलर्णमा
के लदन श्री चन्द्र लिम्ब में श्री जी का ध्यान कर पोंचोपचार पूजा के उपरान्त पाठ
करने से साधक के समस्त रोग नष्ट हो जाते है ,और िह दीर्ण आयु होता है , हर
पूलर्णमा को यह प्रयोग करने से ये प्रयोग लसद्ध हो जाता है।ज्वर से दु खित मनुष्य
के सर पर हाथ रिकर पाठ करने से दु खित मनुष्य का ज्वर दू र हो जाता है ,
सहस्त्रनाम से अलिमोंलित िस्म को धारर् करने से सिी रोग नष्ट हो जाते है ,इसी
प्रकार सहस्त्रनाम से अलिमोंलित जल से अलिषेक करने से दु िी मनु ष्यो की पीड़ा
शाों त हो जाती है अथातण लकसी पर कोई ग्रह या िूत,प्रेत लचपट गया हो तो
अलिमोंलित जल के अलिषेक से िे समस्त पीड़ाकारक तत्व दू र िाग जाते है ,
सुधासागर के मध्य में श्री लललताम्बा का ध्यान कर पोंचोपचार पूजन करके पाठ
सुनाने से सपण आलद की लिष पीड़ा िी शाोंत हो जाती है ,िन्ध्या (िााँ झ)स्त्री को
सहस्त्रनाम से अलिमोंलित मािन खिलाने से िह शीघ्र गिण धारर् करती है ,लनत्य पाठ
करने िाले साधक को दे िकर जनता मुग्ध हो जाती है । पाठ करने िाले साधक के
शिुओों को पक्षीराज िगिान शरिेश्वर नष्ट कर दे ते है , साधक के लिरुद्ध अलिचार
करने िाले शिु को मााँ प्रत्योंलगरा िा जाती है ,और साधक को क्ूर दृलष्ट से दे िने
िाले िैरी को मातंड िैरि अाँधा कर दे ते है।जो सहस्त्रनाम का पाठ करने िाले
साधक की चोरी करता है उसे क्षेिपाल िगिान मार दे ते है।यलद कोई लिद्वान लिद्वता
के र्मोंड में आकर सहस्त्रनाम के साधक से शास्त्राथण करता है तो मााँ नकुलीश्वरी
उसका िाकस्तम्भन कर दे ती है ,साधक के शिु चाहे िो राजा ही क्ोों न हो मााँ
दखिनी उसे नष्ट कर दे ती है।छः मास पयंत पाठ करने से साधक के र्र में लक्ष्मी
खथथर हो जाती है ।एक मास पयंत तीन िार पाठ करने से सरस्वती साधक की
लजभ्या पर लिराजने लगती है ।लनस्तन्द्र होकर एक पक्ष पयंत सहस्त्रनाम का पाठ
करने से साधक में िशीकरर् शखि आ जाती है ।सहस्त्रनाम के साधक की दृलष्ट
पड़ने से पालपयोों के पाप नष्ट हो जाते है।
शुक्िार के लदन श्रीचक्राज में सहस्त्रनाम से मााँ का अचणन करने िाला अपनी
समस्त अलिलाषाओों को पूर्ण कर सि प्रकार के सौिाग्य युि पुि और पौिोों से
सुशोलित होकर लिलिध सुिोों को िोगता हुआ मुिी को प्राप्त होता है । लनष्काम
पाठ करने से ब्रह्मज्ञान पैदा होता है लजससे साधक आिागमन के िोंधन से मुि हो
जाता है।सहस्त्रनाम का पाठ करने से धनकामी धन को लिद्याथी लिद्या को यशकामी
यश को प्राप्त करता है ,धमाण नुष्ठान से रलहत पापो की िहुलता से युि इस कललयुग
में श्री लललता सहस्त्रनाम के पाठ लकये लिना जो साधक मााँ की कृपा चाहता है िो
मुिण है ,िो लिना ने िोों से रूप को दे िना चाहता है ।जो पराम्बा का िि िनना
चाहता उसे लनत्यमेि श्री लललता सहस्त्रनाम का पाठ अिश्य करना चालहएलललता
आत्मा की उिासपूर्ण, लक्याशील और प्रकाशमय अलिव्यखि है । मुि चेतना लजसमे
कोई राग द्वे ष नहीों, जो आत्मखथथत है िो स्वतः ही उिासपूर्ण, उत्साह से िरी, खिली
हुई होती है । ये लललतकाश है ।`
लललता सहस्रनाम के जप से क्ा लाि होता है हमारे जीिन के लिलिन्न पड़ािोों में
िालपन से लकशोरािथथा, लकशोरािथथा से युिािथथा और इसी तरह .. हमारी
आिश्यकताएों और इच्छाएों िदलती रहती है । इस सि के साथ हमारी चेतना की
अिथथा में िी महती िदलाि होते हैं । जि हम प्रत्येक नाम का जप करते हैं , ति
िे गुर् हमारी चेतना में जागृत होते हैं और जीिन में आिश्यकतानु सार प्रकट होते
हैं ।
लललतासहस्रनाम में िाषा का सौोंदयण अद् िुत है । िाषा िहुत मोहक है और सामान्य
और गहरे अथण दोनोों ही लचत्ताकषणक हैं । उदहारर् के ललए कमलनयन का अथण
सुन्दर और पलिि दृलष्ट है । कमल कीचड़ में खिलता है। लिर िी ये सुन्दर और
पलिि रहता है । कमलनयन व्यखि इस सोंसार में रहता है और सिी पररखथथलतयोों में
इसकी सुोंदरता और पलििता को दे िता है ।
लललता, पाठक को सहस्रनाम में िलर्णत लिलिन्न गुर्ोों से पहचान कराकर उनके दोनोों
प्रकार के (गूढ़ और सामान्य) अथों की झलक िी दे ने के उद्दे श्य को पूरा करती
है । लकसी लिलशष्ट गुर् के लिलिन्न सन्दिण को िहुत सुोंदर तरीके से लपरोया गया है ।
जो साथ ही एक ही गुर् के लिलिन आयाम प्रस्तुत कर दे ती है।
मखस्तष्क= लिकोर्,
ललाट= अष्टकोर्,
हृदय= चतुदणशार,
कुलक्ष ि नालि= अष्टदल कमल,
करने िाला साधक योगीन्द्र कहलाता है। आराधक अखिल ब्रह्माों ड को श्री योंिमय
मानते हैं अथाण तश्रीयोंि ब्रह्माों डमय है।
लिकोर् तपोलोक,
अष्टकोर् जनलोक,
चतुदणशार िुिलोक,
श्रीयोंि में सिणप्रथम धु री में एक लिन्दु और चारो तरि लिकोर् है , इसमें पाों च लिकोर्
िाहरी और झुकते है जो शखि का प्रदशणन करते हैं और चार ऊपर की तरि
लिकोर् है , इसमें पाों च लिकोर् िाहरी और झुकते हैं जो शखि का प्रदशणन करते है
और चार ऊपर की तरि लशि ती तरि दशाण ते है । अन्दर की तरि झुके पाों च-
पाों च तत्व, पाों च सोंिेदनाएाँ , पाों च अियि, तोंि और पाों च जन्म िताते है ।
ऊपर की ओर उठे चार जीिन, आत्मा, मेरूमज्जा ि िोंशानु गतता का प्रलतलनधत्व करते
है ।चार ऊपर और पाोंच िाहारी ओर के लिकोर् का मौललक मानिी सोंिदनाओों का
प्रतीक है । यह एक मूल सोंलचत कमल है। आठ अन्दर की ओर ि सोलह िाहर की
ओर झुकी पोंिुलड़यााँ है । ऊपर की ओर उठी अलि, गोलाकर, पिन,समतल पृथ्वी ि
नीचे मुडी जल को दशाण ती है । ईश्वरानु िि, आत्मसाक्षात्कार है । यही सम्पूर्ण जीिन का
द्योतक है। यलद मनुष्य िास्ति में िौलतक अथिा आध्याखत्मक समृद्ध होना चाहता है
तो उसे श्रीयोंि थथापना अिश्य ही करनी चालहये । लशिजी कहते हैं हे लशिे !
सोंसार चक् स्वरूप श्रीचक् में खथथत िीजाक्षर रूप शखियोों से दीखप्तमान एिों
मूललिद्या के 9 िीजमोंिोों से उत्पन्न, शोिायमान आिरर् शखियोों से चारोों ओर लर्री
हुई, िेदोों के मूल कारर् रूप ओोंकार की लनलध रूप हैं , श्री योंि के मध्य लिकोर् के
लिोंदु चक् स्वरूप स्वर्ण लसोंहासन में शोिायुि होकर लिराजमान तुम परब्रह्माखत्मका
हो । तात्पयण यह है लक लिोंदु चक् स्वरूप लसोंहासन में श्री लललता महालिपुरसुोंदरी
सुशोलित होकर लिराजमान हैं । पोंचदशी मूल लिद्याक्षरोों से श्रीयोंि की उत्पलत्त हुई है
। पोंचदशी मोंि खथथत ‘‘स’’ सकार से चोंद्र, नक्षि, ग्रहमोंडल एिों रालशयाों आलििूणत
हुई हैं । लजन लकार आलद िीजाक्षरोों से श्री योंि के नौ चक्ोों की उत्पलत्त हुई है ,
उन्ीों से यह सोंसार चक् िना है ।