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Surya Namaskara

gR^ihNAtyAtmaprakAshAnnijaviShayamato.adhyAtmamantrendriyam
syAt
sUryAdyantaH pravR^ittim prajanayati tatashchAdidaivaM taduktam |
rUpAdyaM chAdhibhUtaM yadanugatamanudhyeyamAtmasvarUpam
tenAnte tasya tiShThAmyahamabhimukhamityaShTha me
spaShTamAha ||

There are various ways of performing Surya Namaskara. Here is an


outline of the procedure taught by Harshaji to many members of
Kamakoti Mandali.

After performing a Samkalpa on Sunday early morning for arghya


pradana and sUrya namaskAra, tricha nyAsa is performed and a kalasha
filled with shuddha salila [to which tila, taNDula, dUrvAnkura, bilva,
kusha, kusuma and rakta chandana, the seven ingredients specified by
Sri Vidyaranya, are added] is worshipped. Sri Suryanarayana is invoked
in the dvAdashAvaraNa yantra and worshipped with ShoDashopacharas
followed by AvaraNa pUja. The description of the Yantra is:

bindutrikoNavR^ittaM cha ShaTkoNaM vR^ittayugmakam |


vasukoNaM tathA vR^ittam dvAdashAram tathaiva cha |
bhUpuratrayasaMyuktam sUryayantram vidhIyate ||
Note: Srividyopasakas perform pAtra sthApana as in Sri Krama and
perform the dvAdashAvaraNa pUja during chaturAyatana pUja in
Srichakra itself.

After the AvaraNa pUjA, saurAShTAkShari or other upadiShTa saura


mantras [navAkShari in our case] are recited 108, 300 or 1008 times.
Based on Sampradaya, some use tricha [First mandala of Rigveda],
some mahAsaura [Rigveda], aruNa [TaittiriyAraNyaka, not followed by
any members of Kamakoti Mandali] etc for sUrya namaskAra. Tricha
[tri+richa = tricha] vidhi is taught to us in the Mandali. The namaskaras
are followed by tricha arghya pradAna. For both arghya and namaskara,
a sampuTa of vyAhR^ititraya, saurAshTAkShari, nArAyaNa aShTAkShari,
shiva panchAkShari and tvaritA [tvaritA represents sUryashakti] is used.
The number of Avartanas prescribed for namaskAra is 6, 4 or 2. 12 or 24
arghyas are generally offered to Lord sUryanArAyaNa. Though
purANokta namaskAra [janmAntarakR^itairdoShaiH etc.] is prescribed
for those who cannot perform vaidika namaskAra, we are taught to
perform one round of this as well after the tricha vidhi. The practice is
concluded by recitation of Sri Vishnu Sahasranama Stotra and Aditya
hR^idaya. A person should follow for three days rules such as
abstinence etc before undertaking the practice. There are also
purANokta arghya mantras for those ineligible for vaidika mantras.
Some follow the practice of performing 108 namaskAras using
purANokta mantras [kuryAcchedbhaktisahito hyaShTottarashatam
bhavet].
Sura Namaskara is practiced by many in our Mandali on Sundays,
special days such as birthdays, wedding anniversaries, yugAdi,
sankramaNa, rathasaptamI, siddhArtha saptamI etc.

शशशशशशश शशशशश शशश शशशशशशश शशशश, शशशशशशशशशशश शशश शशशशश,


शशशशशशश शशशशशश शशश शशशशशशश शशश शशशशशशशशश शशश शशशशशशशशशशश
शशशशशश शशश शशशशशशशशशशशश शशशशश शश शशशशशश शशश शशशशशशश
शशशशशशशशशशश शश शशशशशशशशश शशश शशशश शशश शशशशश शश शशश शशशशश शश
शशश शशशश शशश शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशश शशश शशशशशशशशशश शशशश
शशशश शशश शशशश शशशशशशश, शशश शशशशशशशशश, शशशशशशश शशशश शशशशशशश,
शशशशशशशश शशशशशशश शशश शशशशशशश शशश शशशशशशशशशश शशशश शश शशशशशशश
शशशशश शशशश शशशश शशश शशशश, शशशशशशश, शशश, शशशशशश, शशशशशश शशशश,
शशशशशश, शशशशशशशशशश, शशशशशश शशशश, शशशशश शशशश शशश शश शशश
शशशशशशशश शश शशशशशशशशशश शशशश शश शशशश शशशशशश शशशशश शश शशशशशशश
शशश शशशशशशशशशश शश शशशश शशशशशशश शशशश शशशशशशश शश शशशश शशशश शश
शशशशश शशशश शशशशशशश शशश शशशशशश शशश शशशशशशशशशश शशशश शश
शशशशशशशशश शश शशशश शशशशशशश शशशश शशशश शशशशशशशश शशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशश शशश शशशश शशश शशश शश ‘शशशश’ शशशश शशशशशश शशशश
शशशश शशश शश शशशशशशशशशश शशशश शशशश शशशश शश शशश शश शशशश शशशश
शशशश शश शशशश शशश शशशशशशशश शशशश शशश शश-शश शशशश शशश शशशश शशश
शश शशशशशश शश शशशशशशशश शशशशशश शशशश शशश शश शशशशशश शशशशशश शशशश
शशश शशशशशश: शशशशशशशशशश शशशश शश शशशश शशशशशश शशश शशशशशशशशश
शशशश शशशशशशश शशशश शश शशशशश शशशशशशशश शशशशश शशशश शशश शश शशशशश
शशशश शशश शशशशशश शश शशशशश शशश शशशशशश शश शशशशश शश शश शशशशश-
शशशशश शश शशशशशश शशशशशश शश शशशशश शशश शश शशशशशश शशशशशशशशशश
शशशश शशश 19 शशश शशश 19 शशश शशशशशश शश शशश शशशशशश 324 शशशशश शशशश
शशशश शशशशश 12 शशशशशशशशश (शशशश), 20 शशशशश शशशशशश (शशशश), 88 शशशशश
(शशश), 72 शशशश (शशश), 96 शशशश (शशशश), 20 शशशशश (शशशश) शशश 16 शशशश
(शशश) शश शशशशशश शशशश शशशश शश शशशशशशशश शशश शशशशशशशशश शशशशशशश,
शशशशशशशशशशशश शशश शशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशश शश शशशशशश शशश
शशशश शशशश शशशश शशश शशशश शशशश शश शशशश शशश शशशशशशशश शशशश शशश
शशशशशश शशशश शशशशशशश शश, शशश शशश शशश शश शश शशशश शशश शशश शश
शशशशशश शश शश शशशशश शश शशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शश शशशश शशशश
शशशशशशशशश: शशश-शशश शशशशशशशश शश शश-शश शशशशशशशशश शशशशश शशशशश
शश शशशशश शशशश शशश शशशश शशशश शशशश शशश शशशशशशशशश शशश 12 शशशशशश
शशशश शशशश शशशश शशश शश शशशशशशश शश शशशशशशशश शशश शशश शशश-शशश
शशशशशशशश शश शश-शश शशशशशशशशश शशशशश शशशश शश, शशशशशश शशशश शशश
शश शशशशश शशशश शशशश शशशश शश शशशशशश शशशश शशशश शशश शशशशश
शशशशशश: शशशश-शशशश शशशशशशशश शश शश-शश शशशशश शशशशशशशश शशश शशश
20 शशशशशश शशशश शशशश शशशशश: शशशशशशशशश शश शशश शशशश शशशशशश शश
शशशश शश शशशशशशशश शशश शशश शशश शश शशशशशश शशशश शशशश शशश शशशशश
शशशशशश शश शशशशश शशश शशशशश (शशशशशश-शशशशशश) शश शशशशश शशशशश शशश
शशश 88 शशशशशशशश शशशशश शश शशशश शशशश शशशश: शशशशश शश शशश शशशशश
शशशशश शशश शशशश शशशशशश शशश शश-शश शशशशशशशश शश शश-शश शशशश शशशश
शश शश शशश शशश शश शशशशश शश शशश शशशश शशश शश शशशशशश शशश शशश 72
शशशशशश शशशशश शशशश शशशश शशशश: शशशशश, शशशशशश, शशशशश, शशशशशश
शशशशश शशशशशश शशश 24-24 शशशशशशशश शश शश-शश शशशश शशशशश शश शशशशश
शशशश शशश शश शशशशश शश शशशशशश शशशश शशशश शशश शशश शशशशशशश शशश 96
शशशशशश शशशश शशशश शशशश: शशशश शशशशश शश शशश शशश 16 शशशशशशशश शश
शशशश शशश शशशश शश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशश शशशश शशश
शशशशशशशशशशशश शशशशशश शशश शशशशश शशशश शश शशशशशश शशश शशश शश
शशशशश शश शशशशशश शशशश शशशश शशश शशश शशशशशश शशश शशश शशशश शशशश
शश शशशशशश शशशशश शश शशशशशशश शश शशशश शशशशश शशशश शशशशशशश शश
शशशश-शशशशशश शश शशशश शशश शशशशश: शशशशश शशश 20 शशशशशश शशशश शशशश
शशशशश शशशशश: शशशशश शशशशश शशश 3 शशशशशशशश शशशश, शशश शश शशश शशश
शश शशशश शशशश शशशशशशशशशशशशशश शश शशशशश: शशशशशशशशशशशशशश शश 324
शशशशशशशश शशश शशशशशशशशशश 57 शशशशशशश शश शशशशशशश शश शशशश शश: 1.
शशशशशशश 2. शशश 3. शशशश 4. शशशशशश 5. शशशशश 6. शश 7. शशशशशशश 8. शशशश 9.
शशशश 10. शशशशशशश 11. शशशशश शशशशश 12. शशशशशश शशशशशश 13. शशशशशशशशश
14. शशशशशश-शशशशशशशशश 15. शशशशशशशश- शशशशशशश, शशशशशशशशश, शशशशशशशशश,
शशशशश, शशशशश, शशशशशशश शश शशशशशशशशशशश शश शशश शशशशश शशशशश शश
शशशशशश शशशश शशशश शशशशश शशश शशशश 16. शशशशशशशशशश 17.
शशशशशशशशशशशशश - शशशशशशश $ शशशशशश शशशशश शश शश शशशश शश शशश
शशशशशश शशश शशशश शशशश शशशशशश शश शशशशशशशश शशशशश शश शशशशशश
शशशशशशशशश शश शशश शशशशशश शश शशशशशशश शशशश शश- शशशशश, शशशशश,
शशशशश, शशशशशशशश, शशशशशशशशशश, शशशशशश, शशशशशश, शशशशशशशशश, शशशश शश
शशशशशशशशश शशशशशश- शशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशश शश शशशश शश शश
शश शशशशश शशशश शश शश शशशशशश शश शशशश शशशशशश शशशशशश शशश शशशश शश
शशश शशश शशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशश शश शशशशश शशशशश शश शशशशशशश
शशश शशशश शशशशशशशश, शशशशशशशशश, शशशशशशशशशशशशश, शशशशशशशशश, शशशशश,
शशशशशशश, शशशशश, शशशशशश, शशशशशश, शशशशशश, शशशशश, शशशशश शश शशशशशशशश
शशशश 18. शशशशश 19. शशशशश 20 शशश 21. शशशशशश - शश शशश शशशशशशश शशश
शशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशश शश शशश शशश शशशशशशश शशश शश
शशशशशशश शशशश 22. शशशशशशश शशशशशश - शशशशश शशशश शश शशशशश शश
शशशशशशशशश, शशशशशशश, शशशशश, शशशश, शशश शशश शशशशशश शश शशश शशशशश शश
शशशश 23. शशशशशश 24. शशशशशश 25. शशशशश 26. शशशशशश शशश 27. शशशशश 28. शशश
29. शशशशशश 30 शशशशशश 31. शशशशशश शशशश- शशशश शशशशशशश शशशश शशश शशश
शशशश शशशशशशशश शश शशशशशशश शशशशशशश शशशश शशशश शशशशशशश शशश
शशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशश शश शशशशश शशशश शशशश शशश शशशशशशशश
शशश शशशशशश शशश- शशशश, शशशशश, शशशशशशश, शशशशशशश, शशशशशश, शशशशश शश
शशशशशशश 32. शशशशशशशश 33. शशशश 34. शशश 35. शशशशशशश 36. शशशश 37. शशशशश
38. शशशश 39. शशशश 40. शशश 41. शशशशश- शश शशशश शशशश शशश शशशशशश शश शश
शशशश शश शशशशशश शश शशश शशशशश शशशशशशश शश शशशशश शशश शशशश शश शशश
शशश शशशशशशश शशशश शशशश शशशशश, शशशश, शशशशश शशश शश शशशशशश शश शशश,
शशशश, शशशशशशशशश शशशशशशशशश शशश शशश शश शशशश शशशशश 42. शशशश 43.
शशशशशशशश 44. शशशशशशशशशशश 45. शशशशश 46. शशशशशशश 47. शशशशशश 48. शशशशश
- शश शशश शशश शशशश शशशशशशशश शशश शशशशशशशश शश शशश शश शशशशशश शश
शश शशशश शशशश शशश 49. शशशशशशशश- शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशश
शशशशशशश शशशश शशशशशशश शशश शशशश शश शशशशशशश शश शशशश शशशशशश
शशशश शशशश शशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशशश शश शशशश शश शशशशशशश शश
शशशश शशशशश शशशशश शशशश शशश 50. शशशशशशश 51. शशशशशश 52. शशशशशशशश 53.
शशशशशश 54. शशशशशशशश 55. शशशशशशश 56. शशशशशशशशश शशश 57. शशशशशशश -
शशशशशशशश, शशशशशशश शश शशशशश शशशश शशशश शशशशशशशश शश शशशशशशशशशशश
शशशश शशशश शशशश शशशशश शशश शश शशशशशश शश शशशशशशश शश शशशशश शशश
शशशश शशश शशशशशशश शशशशशशश शशश शशशशशशशश: शशशश शशशशशशश शशशश,
शशशशशशश शशशश शशशशशशशशश, शशशशशशशशश शशशश, शशश शशशशशशशशश शशश
शशशशशशश शशशशशश शश शशश शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशश शश शशशशश
शशशश शशश शशशश शश शशशशशशश शश शशश शश शशशशश शशशशशशशशश शशशशशशश
शश शशशशश शशशशशशश शश शशशशशशशशश शशश शशशश-शशशशशश शश शशशश शशश
शशशश शशशश, शशशशश शशश शशशश शश शशशशशशश शशशशशश शशश शशशश शशशश
शशश शशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशश शशश शशशशशशशशशश शशशश शश शश
शशशशशशशश शश शश शशश शशशशशशश शश शशश शशशशश शशश शशश शशश
शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शश शशशशश शश, शशशशश शशश शशशशशशशश शश
शशशशशश शश शश शशश शशशशशशशशशश शश शशशश शश शश शशशश शशशश, शशशशशशश
शशशश, शशशश शशशश, शशशशश शशशश, शशशश शशशशश शशशश, शशशशशशशशशशश शशशश,
शशशशशशशश शशशश, शशशशशशश शशशश, शशशशशशशशशशशश शशशशशशश, शशशशश,
शशशशशशश, शशशशशशश, शशशशश शशशशश, शशशशशशशशश, शशशश शशशशश, शशशशशशशशश
शशश शशशशशश शशश शशशश शशशश शश शशशशशश शशशशशशशश शश शशशश शश शशशश
शशश शश शशशशशश शश शशशशश शशशश शशश शश, शशशशशश शशश शशशश शशशश शशश
शशशश शशश शशशशश शशशशशशशश शशश शशशश शश शशशशशशशशशशशश शशशश
शशशशशशश शशशश शश शशशशशशश शशशश शशश शश शशशश शश शश शशशशशशश शशश
शशशश शशशश शशशश शश शशशश शशशश शशशशश शशश शशशश शशशश शशश शशशश शश
शशश शशशशश शश, शशशशश शशश शशशशशशश शशशश शशश शशश शश- शशशशशशश
शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश शश शशशशशशशश शशशश शश शशशश शश शश शशशश
शशश शश शशशशशश शशशश शश शशशशशशश शशशश शशश शशशशशश शशशशशश शशशश
शश शशशश शशश शशशशशशशश, शशशशश शश शशशशशश शश शशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशशशशश शशशश शश शशशश शश शश शशशशशशशशशशश शशशशश शशशश
शशशशशश शशशश शशशश शशशशशशशश शश शशशशश शशशश शशशश शशश शशशशश
शशशशश शश शशशश शश शशश शशशशश शश शशशशशश शशशश शशशश शशशश शशश

श्री लललता सहस्त्रनाम का लिशेष महत्व है ,श्री लललता सहस्त्रनाम के पाठ से इष्टदे िी
प्रसन्न हो जाती है और उपासक की कामना को पूर्ण करती है ,यलद उपासक लनत्य
पाठ न कर सके तो पूण्य लदिसोों पर सोंक्ाोंलत पर दीक्षा लदिस पर,पूलर्णमा
पर,शुक्िार को अपने जन्मलदिस पर,

दलक्षर्ायन ,उत्तरायर् के समय ,निमी चतुदणशी आलद को अिश्य पाठ करें ।पूलर्णमा
के लदन श्री चन्द्र लिम्ब में श्री जी का ध्यान कर पोंचोपचार पूजा के उपरान्त पाठ
करने से साधक के समस्त रोग नष्ट हो जाते है ,और िह दीर्ण आयु होता है , हर
पूलर्णमा को यह प्रयोग करने से ये प्रयोग लसद्ध हो जाता है।ज्वर से दु खित मनुष्य
के सर पर हाथ रिकर पाठ करने से दु खित मनुष्य का ज्वर दू र हो जाता है ,

सहस्त्रनाम से अलिमोंलित िस्म को धारर् करने से सिी रोग नष्ट हो जाते है ,इसी
प्रकार सहस्त्रनाम से अलिमोंलित जल से अलिषेक करने से दु िी मनु ष्यो की पीड़ा
शाों त हो जाती है अथातण लकसी पर कोई ग्रह या िूत,प्रेत लचपट गया हो तो
अलिमोंलित जल के अलिषेक से िे समस्त पीड़ाकारक तत्व दू र िाग जाते है ,
सुधासागर के मध्य में श्री लललताम्बा का ध्यान कर पोंचोपचार पूजन करके पाठ
सुनाने से सपण आलद की लिष पीड़ा िी शाोंत हो जाती है ,िन्ध्या (िााँ झ)स्त्री को
सहस्त्रनाम से अलिमोंलित मािन खिलाने से िह शीघ्र गिण धारर् करती है ,लनत्य पाठ
करने िाले साधक को दे िकर जनता मुग्ध हो जाती है । पाठ करने िाले साधक के
शिुओों को पक्षीराज िगिान शरिेश्वर नष्ट कर दे ते है , साधक के लिरुद्ध अलिचार
करने िाले शिु को मााँ प्रत्योंलगरा िा जाती है ,और साधक को क्ूर दृलष्ट से दे िने
िाले िैरी को मातंड िैरि अाँधा कर दे ते है।जो सहस्त्रनाम का पाठ करने िाले
साधक की चोरी करता है उसे क्षेिपाल िगिान मार दे ते है।यलद कोई लिद्वान लिद्वता
के र्मोंड में आकर सहस्त्रनाम के साधक से शास्त्राथण करता है तो मााँ नकुलीश्वरी
उसका िाकस्तम्भन कर दे ती है ,साधक के शिु चाहे िो राजा ही क्ोों न हो मााँ
दखिनी उसे नष्ट कर दे ती है।छः मास पयंत पाठ करने से साधक के र्र में लक्ष्मी
खथथर हो जाती है ।एक मास पयंत तीन िार पाठ करने से सरस्वती साधक की
लजभ्या पर लिराजने लगती है ।लनस्तन्द्र होकर एक पक्ष पयंत सहस्त्रनाम का पाठ
करने से साधक में िशीकरर् शखि आ जाती है ।सहस्त्रनाम के साधक की दृलष्ट
पड़ने से पालपयोों के पाप नष्ट हो जाते है।

अन्न,िस्त्र,धन,धान्य,दान आलद सत्पाि को ही दे ना चालहए।सत्पाि की पररिाषा-जो


श्रीलिद्या मोंिराज को जानता है ,लनत्य सहस्त्रनाम का पाठ करता है जो प्रलतलदन
श्रीचक्ाचणन करता है ,िह सोंसार में सत्पाि है ।

जो न मोंिराज को जानता है न सहस्त्रनाम का पाठ करता है िो पशु के समान है


उसको दान दे ना लनरथणक होता है।जो मााँ की कृपा अपने ऊपर चाहता है उसे
सत्पाि को ही दान दे ना चालहए। जो उपासक श्रीचक्राज में श्री लिद्या मााँ का पूजन
कर सहस्त्रनाम से पदम्,कमल,गुलाि,तुलसी की मोंजरी,चम्पक
,जाती,मखिका,कने र,कुोंद, केिड़ा,केशर उत्प्ल, पातल,लिलपि,माध्वी,केलतकी ,और अन्य
सुोंगोंलधत पुष्पो से मााँ का अचणन करता है उसके पूण्य को िगिान लशि िी नही
कह सकते।

जो पूलर्णमा के लदन श्रीचक्राज में मााँ श्रीलिद्या का सहस्त्रनाम से अचणन करता है िो


स्वयों श्री लललताम्बा स्वरूप हो जाता है ।महानिमी के लदन श्रीचक्राज में सहस्त्रनाम
से अचणन करने से मुखि हस्तगत होती है ।

शुक्िार के लदन श्रीचक्राज में सहस्त्रनाम से मााँ का अचणन करने िाला अपनी
समस्त अलिलाषाओों को पूर्ण कर सि प्रकार के सौिाग्य युि पुि और पौिोों से
सुशोलित होकर लिलिध सुिोों को िोगता हुआ मुिी को प्राप्त होता है । लनष्काम
पाठ करने से ब्रह्मज्ञान पैदा होता है लजससे साधक आिागमन के िोंधन से मुि हो
जाता है।सहस्त्रनाम का पाठ करने से धनकामी धन को लिद्याथी लिद्या को यशकामी
यश को प्राप्त करता है ,धमाण नुष्ठान से रलहत पापो की िहुलता से युि इस कललयुग
में श्री लललता सहस्त्रनाम के पाठ लकये लिना जो साधक मााँ की कृपा चाहता है िो
मुिण है ,िो लिना ने िोों से रूप को दे िना चाहता है ।जो पराम्बा का िि िनना
चाहता उसे लनत्यमेि श्री लललता सहस्त्रनाम का पाठ अिश्य करना चालहएलललता
आत्मा की उिासपूर्ण, लक्याशील और प्रकाशमय अलिव्यखि है । मुि चेतना लजसमे
कोई राग द्वे ष नहीों, जो आत्मखथथत है िो स्वतः ही उिासपूर्ण, उत्साह से िरी, खिली
हुई होती है । ये लललतकाश है ।`

लललता सहस्रनाम में हम दे िी मााँ के एक हजार नाम जपते हैं। नाम का एक


अपना महत्त्व होता है। यलद हम चन्दन के पेड़ को याद करते हैं तो हम उसके
इि की स्मृ लत को साथ ले जाते हैं। सहस्रनाम में दे िी के प्रत्येक नाम से दे िी का
कोई गुर् या लिशेषता िताई जाती है।

लललता सहस्रनाम के जप से क्ा लाि होता है हमारे जीिन के लिलिन्न पड़ािोों में
िालपन से लकशोरािथथा, लकशोरािथथा से युिािथथा और इसी तरह .. हमारी
आिश्यकताएों और इच्छाएों िदलती रहती है । इस सि के साथ हमारी चेतना की
अिथथा में िी महती िदलाि होते हैं । जि हम प्रत्येक नाम का जप करते हैं , ति
िे गुर् हमारी चेतना में जागृत होते हैं और जीिन में आिश्यकतानु सार प्रकट होते
हैं ।

दे िी मााँ के नाम के जप से हम अपने िीतर लिलिन्न गुर्ोों को जागृत करके उन


गुर्ोों को अपने चारोों ओर के सोंसार में प्रकट होते दे ि और समझ पाने की शखि
िी पाते हैं । हम सिी अपने प्राचीन ऋलषयोों के आिारी है लजन्ोोंने लदव्यता का
आराधन उसके सोंपूर्ण िैलिध्य गुर्ोों के साथ लकया लजसने हमारे ललए जीिन को
पूर्णता से जीने का मागण प्रशस्त लकया।सहस्रनाम का जप अपने में ही एक पूजा
लिलध है । ये मन को शुद्ध करके चेतना का उत्थान करता है । इस जप से हमारा
चोंचल मन शाों त होता है । िले ही आधे र्ोंटे के ललए ही सही मन ईश्वर से एक
रूप और उनके गुर्ोों के प्रलत एकाग्र होता है और िटकना रुक जाता है । ये
लिश्राम का सामान्य रूप है ।

लललतासहस्रनाम में िाषा का सौोंदयण अद् िुत है । िाषा िहुत मोहक है और सामान्य
और गहरे अथण दोनोों ही लचत्ताकषणक हैं । उदहारर् के ललए कमलनयन का अथण
सुन्दर और पलिि दृलष्ट है । कमल कीचड़ में खिलता है। लिर िी ये सुन्दर और
पलिि रहता है । कमलनयन व्यखि इस सोंसार में रहता है और सिी पररखथथलतयोों में
इसकी सुोंदरता और पलििता को दे िता है ।

लललता, पाठक को सहस्रनाम में िलर्णत लिलिन्न गुर्ोों से पहचान कराकर उनके दोनोों
प्रकार के (गूढ़ और सामान्य) अथों की झलक िी दे ने के उद्दे श्य को पूरा करती
है । लकसी लिलशष्ट गुर् के लिलिन्न सन्दिण को िहुत सुोंदर तरीके से लपरोया गया है ।
जो साथ ही एक ही गुर् के लिलिन आयाम प्रस्तुत कर दे ती है।

हमें ये जानना चालहए लक काम इस धरा पर एक िहुत ही सुन्दर और महान लक्ष्य


के ललए आये हैं। जि श्रद्धा और जाग्रलत के साथ पाठ लकया जाता है , लललता हमारी
चेतना में शुखदद लाकर हमें सकारात्मकता, लक्याशीलता और उिास का िोंडार िना
दे ती है । इसललए आइये आनों द मय होों और सोंसार के ललए उिास रूप हो जाये।
Devimaana Ashtaanga
august 29, 2019, posted in shri vidya
During shristhi space comes out of time.Technically time gets defined as interval
between two events in space.Before creation when space has not emerged out,parachit
exists as Aadhya,the original, Maha Kali.During the creation,this parachit takes form of
Shri Lalitha,hence all digits of time are called Kala nithya.
Devi herself pervades everything as kalanitya and these form her organs. Any
puja,parayan or japa is incomplete without the use of sankalp. The Ashtang needs to be
used in respect of desha as well as kala for the desired sankalp to be complete.The
desha panchang is based on the constellations and calculated out as .tithi,
nakshatra,yoga,karana, vara.
The importance of matrukas is emphasised hence the necessity of learning the
matrukas are of utmost importance.Devi Lalitha is called matruka rupini and throught
the parayan of the ashtaanga, matrukas are emphasised.
Out of Shri Lalithas vimarsh came the 36 tathwas.Hence the only way to realise and
experience her is through Guru.
The Devi mana Ashtanga is used by Srividyopasakas .The source for this system is
found in the, Shaktiyamala, Paramananda Tantra, Kaulikarnava, Tantraraja, Srigarbha
Kularnava, Nathakrama patala of Badabanala, Tripurasundari Tantra and works such as
Saubhaya Tantra, Saubhagya Chintamani, Dattareya Samhita, Saubhagyodaya, Nitya
Kalpa, Nathodaya, Kala Nitya Nirnaya, Durvasa Kalpa etc. The knowledge of Ashtanga
is considered very auspicious and important for all Srividya Upasaka as it has various
applications. The Devimaan Ashtanga is structured as:
Ghatika: 60 ghatikas each being 24minutes long.
Vasaram: 9 days make a week, each of the nine days have a nath named after it.
Divasa: 4*9 divas is 36 corresponding to the 36 tatthwas as per traipur siddhant.
Din nitya: each day of the month will have 15 nitya,starting from Kameshwari in
ascending and descending order not to be confused with tithi nitya.
Maasa: 16 months designated with a Chandra kala or a nitya name.
Varsha: 16 Chandra kala/months make one year
Parivrutthi: 36 tattwa varsha makes one parrivrutthi
Yuga: 36 Parivrutthis make one Yuga.
This is a shakta based calendar and should be learnt from a competent guru.The
parayan for purnadikshits are further advised to do further parayan of this ashtangam
like,nath parayan,ghatika parayan,tattwa parayan,nama parayan,mantra
parayan,chakra parayan etc.

अतएि श्री योंिोपासक का

ब्रह्मरों ध्र = लिोंदु चक्,

मखस्तष्क= लिकोर्,

ललाट= अष्टकोर्,

भ्रूमध्य= अोंतदण शार,

गला= िलहदण शार,

हृदय= चतुदणशार,
कुलक्ष ि नालि= अष्टदल कमल,

कलट= अष्टदल कमल का िाह्यिृत्त,

स्वालधष्ठान =षोडषदल कमल,

मूलाधार =षोडशदल कमल का िाह्य लििृत्त,

जानु =प्रथम रे िा िूपुर,

जों र्ा= लद्वतीय रे िा िूपुर और

पैर= तृतीय रे िा िूपुर िन जाते हैं ।

श्री यंत्र की ब्रह्मंडमत्मकतम:- श्रीयंत्र कम ध्यमन

करने िाला साधक योगीन्द्र कहलाता है। आराधक अखिल ब्रह्माों ड को श्री योंिमय
मानते हैं अथाण तश्रीयोंि ब्रह्माों डमय है।

योंि का लिोंदुचक् सत्यलोक,

लिकोर् तपोलोक,

अष्टकोर् जनलोक,

अोंतदण शार महलोक,

िलहदण शार स्वलोक,

चतुदणशार िुिलोक,

प्रथम िृत्त िूलोक,

अष्टदल कमल अतल,

अष्टदल कमल का िाह्य िृत्त लितल,

षोडशदल कमल सुतल,

षोडशदल कमल का िाह्य लििृत्त तलातल,

प्रथम रे िा िूपुर महातल,

लद्वतीय रे िा िूपुर रसातल और

तृतीय रे िा िूपुर पाताल है ।


ब्रह्मालद दे ि, इों द्रालद लोकपाल, सूयण, चोंद्र आलद निग्रह, अलश्वनी आलद सत्ताईस नक्षि, मेष
आलद द्वादश रालशयाों , िासुलक आलद सपण, यक्ष, िरुर्, िैनतेय, मोंदार आलद लिटप,
अमरलोक की रों िालद अप्सराएों , कलपल आलद लसद्धसमूह, िलशष्ठ आलद मुनीश्वयण, कुिेर
प्रमुि यक्ष, राक्षस, गोंधिण, लकन्नर, लिश्वािसु आलद गिैया, ऐराित आलद अष्ट लदग्गज,
उच्ैःश्रिा आलद र्ोड़े , सिण-आयुध, लहमलगरर आलद श्रेष्ठ पिणत, सातोों समुद्र, परम पािनी
सिी नलदयाों , नगर एिों राष्टर ये सि के सि श्रीयोंिोत्पन्न हैं ।

श्रीयोंि में सिणप्रथम धु री में एक लिन्दु और चारो तरि लिकोर् है , इसमें पाों च लिकोर्
िाहरी और झुकते है जो शखि का प्रदशणन करते हैं और चार ऊपर की तरि
लिकोर् है , इसमें पाों च लिकोर् िाहरी और झुकते हैं जो शखि का प्रदशणन करते है
और चार ऊपर की तरि लशि ती तरि दशाण ते है । अन्दर की तरि झुके पाों च-
पाों च तत्व, पाों च सोंिेदनाएाँ , पाों च अियि, तोंि और पाों च जन्म िताते है ।

ऊपर की ओर उठे चार जीिन, आत्मा, मेरूमज्जा ि िोंशानु गतता का प्रलतलनधत्व करते
है ।चार ऊपर और पाोंच िाहारी ओर के लिकोर् का मौललक मानिी सोंिदनाओों का
प्रतीक है । यह एक मूल सोंलचत कमल है। आठ अन्दर की ओर ि सोलह िाहर की
ओर झुकी पोंिुलड़यााँ है । ऊपर की ओर उठी अलि, गोलाकर, पिन,समतल पृथ्वी ि
नीचे मुडी जल को दशाण ती है । ईश्वरानु िि, आत्मसाक्षात्कार है । यही सम्पूर्ण जीिन का
द्योतक है। यलद मनुष्य िास्ति में िौलतक अथिा आध्याखत्मक समृद्ध होना चाहता है
तो उसे श्रीयोंि थथापना अिश्य ही करनी चालहये । लशिजी कहते हैं हे लशिे !
सोंसार चक् स्वरूप श्रीचक् में खथथत िीजाक्षर रूप शखियोों से दीखप्तमान एिों
मूललिद्या के 9 िीजमोंिोों से उत्पन्न, शोिायमान आिरर् शखियोों से चारोों ओर लर्री
हुई, िेदोों के मूल कारर् रूप ओोंकार की लनलध रूप हैं , श्री योंि के मध्य लिकोर् के
लिोंदु चक् स्वरूप स्वर्ण लसोंहासन में शोिायुि होकर लिराजमान तुम परब्रह्माखत्मका
हो । तात्पयण यह है लक लिोंदु चक् स्वरूप लसोंहासन में श्री लललता महालिपुरसुोंदरी
सुशोलित होकर लिराजमान हैं । पोंचदशी मूल लिद्याक्षरोों से श्रीयोंि की उत्पलत्त हुई है
। पोंचदशी मोंि खथथत ‘‘स’’ सकार से चोंद्र, नक्षि, ग्रहमोंडल एिों रालशयाों आलििूणत
हुई हैं । लजन लकार आलद िीजाक्षरोों से श्री योंि के नौ चक्ोों की उत्पलत्त हुई है ,
उन्ीों से यह सोंसार चक् िना है ।

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