पुलिन बिहारी दास
पुलिनबिहारी दास (24 जनवरी 1877 - 17 अगस्त 1949) भारत के महान स्वतंत्रता प्रेमी व क्रांतिकारी थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए "ढाका अनुशीलन समिति" नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की व अनेक क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]पुल्लिन जी का जन्म 24 -जनवरी-1877 को बंगाल के फरीदपुर जिले में लोनसिंह नामक गाँव में एक मध्यम-वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिताजी श्री नब कुमार दास मदारीपुर के सब-डिविजनल कोर्ट में वकील थे। उनके एक चाचाजी डिप्टी मजिस्ट्रेट व एक चाचाजी मुंसिफ थे।
उन्होंने फरीदपुर जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज की पढ़ाई के समय ही वह लेबोरटरी असिस्टेंट व निदर्शक (laboratory assistant and demonstrator) बन गए थे।
उन्हें बचपन से ही शारीरिक संवर्धन का बहुत शौक था और वह बहुत अच्छी लाठी चला लेते थे। कलकत्ता में सरला देवी के अखाड़े की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने भी 1903 में तिकतुली (Tikatuli) में अपना अखाड़ा खोल लिया। 1905 में उन्होंने मशहूर लठैत (लाठी चलाने में माहिर) "मुर्तजा" से लाठीखेल और घेराबंदी की ट्रेनिंग ली।
राष्ट्र सेवा
[संपादित करें]सितम्बर-1906 में श्री बिपिन चन्द्र पाल और श्री प्रमथनाथ मित्र पूर्वी बंगाल और असम के नए बने प्रान्त का दौरा करने गए। वहां प्रमथ नाथ ने जब अपने भाषण के दोरान जनता से आह्वान किया की 'जो लोग देश के लिए अपना जीवन देने को तैयार हैं वह आगे आयें ' तो श्री पुलिन तुरन्त आगे बढ़ गए। बाद में उन्हें अनुशीलन समिति की ढाका इकाई का संगठन करने का दायित्व भी सौंपा गया और अक्टूबर में उन्होंने 80 युवाओं के साथ "ढाका अनुशीलन समिति" की स्थापना की।
पुलिन उत्कृष्ट संगठनकर्ता थे और उनके प्रयासों से जल्द ही प्रान्त में समिति की 500 से भी ज्यादा शाखाएं हो गयीं।
नेशनल स्कूल, ढाका
[संपादित करें]क्रांतिकारी युवाओं को prashikshan देने के लिए श्री पुल्लिन ने ढाका में नेशनल स्कूल की स्थापना की। इसमें नौजवानों को शुरू में लाठी और लकड़ी की तलवारों से लड़ने की कला सिखाई जाती थी और बाद में उन्हें खंजर चलाने और अंतत: पिस्तोल और रिवोल्वर चलाने की भी शिक्षा दी जाती थी।
क्रांतिकारी घटनाएं
[संपादित करें]पुल्लिन ने ढाका के दुष्ट पूर्व जिला मजिस्ट्रेट बासिल कोप्लेस्टन एलन (Basil Copleston Allen) की हत्या की योजना बनायी। 23 -दिसंबर-1907 को जब एलन वापस इंग्लैंड जा रहा था तभी गोलान्दो (Goalundo) रेलवे स्टेशन पर उसे गोली मार दी गयी किन्तु दुर्भाग्य से वह बच गया।
धन की व्यवस्था करने के लिए 1908 के प्रारंभ में उन्होंने सनीसनीखेज "बारा डकैती कांड" को अंजाम दिया। इस साहसी डकैती को वीर युवकों ने अपनी जान पर खेलकर दिन-दहाड़े (दिन में) डाला था और यह बारा के जमींदार के घर पर डाली गयी थी न की गरीबों के घर। इस से प्राप्त धन से क्रांतिकारियों ने हथियार ख़रीदे।
1908 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें भूपेश चन्द्र नाग, श्याम सुन्दर चक्रवर्ती, क्रिशन कुमार मित्र, सुबोध मालिक और अश्विनी दत्त के साथ गिरफ्तार कर लिया और मोंटगोमरी जेल में कैद कर दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार उन्हें झुका नहीं सकी और 1910 में जेल से रिहा होने के बाद वह दोबारा क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज करने में लग गए। इस समय तक, (प्रमथ नाथ मित्र की म्रत्यु के पश्चात्) ढाका समूह कलकत्ता समूह से अलग हो चुका था।
परन्तु अंग्रेज सरकार ने "ढाका षड्यंत्र केस " में पुल्लिन व उनके 46 साथियों को जुलाई -1910 को दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उनके 44 अन्य साथियों को भी पकड़ लिया गया। इस केस में पुल्लिन को कालेपानी (आजीवन कारावास) की सजा हुई और उन्हें कुख्यात सेल्युलर जेल में भेज दिया गया। यहाँ उनकी भेंट अपने ही जैसे वीर क्रांतिकारियों से हुई जैसे श्री हेमचन्द्र दास, बारीन्द्र कुमार घोष और विनायक दामोदर सावरकर।
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर उनकी सजा कम कर दी गयी और 1918 में उन्हें रिहा कर दिया गया लेकिन फिर भी उन्हें एक वर्ष तक गृह-बंदी में रखा गया। अंग्रेज सरकार के दमन और अत्याचारों के बाद भी 1919 में पूरी तरह रिहा होते ही उन्होंने एक बार फिर से समिति की गतिविधियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू कर दिया। लेकिन सरकार द्वारा समिति को गैर-कानूनी घोषित करने और उसके सदस्यों के बिखर जाने से उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी।
महात्मा गाँधी द्वारा असहयोग आन्दोलन प्रारंभ करने से अनेक युवाओं में नयी उमंग उठी और उन्होंने उसे अपना समर्थन दिया किन्तु पुल्लिन अभी भी अपने आदर्शों और अपने मार्ग पर अडिग रहे। सरकार द्वारा समिति को गैर-कानूनी घोषित करने के कारण उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित करने के लिए 1920 में "भारत सेवक संघ" की स्थापना की।
क्रांतिकारी विचारधारा को फेलाने के लिए उन्होंने श्री एस.आर. दास के सानिध्य में "हक़ कथा" और "स्वराज" नामक दो पत्रिकाएँ भी निकालीं। समिति गुप्त रूप से बनी रही लेकिन धीरे-धीरे पुल्लिन और समिति में दूरी आने लगी। फलस्वरूप उन्होंने स्वयं को समिति से प्रथक कर लिया, भारत सेवक संघ को भंग कर दिया और अंतत 1922 में सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया।
1928 में उन्होंने कलकत्ता के मच्चुबाजार (Mechhuabazar) में "वांग्य व्यायाम समिति" (Bangiya Byayam Samiti) की स्थापना की। यह शारीरिक शिक्षा का संसथान व अखाडा था जहाँ वह युवकों को लाठी चलाने, तलवारबाजी और कुश्ती की ट्रेनिंग देने लगे।
बाद का जीवन
[संपादित करें]उन्होंने विवाह किया और उनके तीन पुत्र व दो पुत्रियाँ हुईं। बाद में एक योगी के संपर्क में आने से उनकी अनासक्ति भाव में प्रवृत्त हुई। इसी समय स्वामी सत्यानन्द गिरि जी और उनके मित्र पुल्लिन जी के निवास पर जाते और वहां सत्संग, आदि किया करते थे।
सम्मान
[संपादित करें]कोलकाता विश्वविद्यालय उनके सम्मान में विशेष मेडल देती है जिसका नाम है " पुल्लिन बिहारी दास स्मृति पदक "।