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पार्मीजनीनो

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पार्मीजनीनो
Parmigianino

उत्तल दर्पण में स्व-चित्र (c. 1524, age about 21).[1] Kunsthistorisches Museum, Vienna.
जन्म Girolamo Francesco Maria Mazzola
11 जनवरी 1503
Parma, Duchy of Milan
मौत 24 अगस्त 1540(1540-08-24) (उम्र 37 वर्ष)
Casalmaggiore, Republic of Venice
राष्ट्रीयता Italian
प्रसिद्धि का कारण Painting, etching

पार्मीजनीनो (१५०३-१५४०) इटली का एक सुयोग्य चित्रकार था। वह इटली के उत्तरी प्रदेश पारमा के लैबार्ड कलाग्रुप से सम्बन्धित था।

पार्मीजनीनो का समूचा परिवार कलाकारों का था। फलतः जन्मजात संस्कारों और अपनी मौलिक प्रतिभा के कारण वह १४ वर्ष से भी कम उम्र में एक अच्छा कलाकार माना जाने लगा और १९ वर्ष से भी कम उम्र में उसने पारमा चर्च की सात चैपल के भित्तिचित्रों की सुसज्जा की। अपने अध्ययन को परिपक्व करने वह रोम चला गया, पर वहाँ के पोप क्लीमेंट सप्तम ने उसकी ख्याति सुनकर स्थानीय गिर्जाघर की भीतरी छत के चित्रण का कार्य सौंप दिया। सन् १५२७ में वारवून के नेतृत्व में जब साम्राज्यवादियों और चार्ल्स पंचम के सैनिकों ने उक्त नगर को लूटा और विध्वंस किया तो कहते हैं इस घोर अंशांति और गड़बड़ में भी वह चुपचाप अपने एक सुप्रसिद्ध चित्र को बनाने में व्यस्त रहा। सैनिकों ने उसके स्टूडियों पर भी छापा मारा और काफी तहस नहस किया, पर उसकी किसी कदर शांति भंग न हुई। हारकर सैनिकों के नेता ने उसकी रक्षा की।

गुलाब के फूलों के बीच मदोना, १५३०

इस दुर्घटना के पश्चात् वह रोम छोड़कर बोलोग्ना जा बसा जहाँ उसने अनेक महत्वपूर्ण चित्रों का निर्माण किया। सेंट मेरिया चर्च में उसे बड़े ही दुरूह और गुंफित भित्तिचित्रों के निर्माण का आदेश हुआ, किन्तु अनवरत श्रम और साधना के बावजूद वह अपने अनुबन्ध को समय पर पूरा न कर सकने के कारण जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वह क्रेमोना क्षेत्र में अज्ञात रूप से भाग गया, पर परिस्थितियों ने उसके शरीर और मन को इतना क्लान्त एवं जर्जर कर दिया था कि वहीं ३७ वर्ष की अल्पायु में ही उसकी मृत्यु हो गई।

वेज़ेरी ने उसकी इस बदकिस्मती, और काम करने के शैथिल्य को शराब की एक वजह माना है, पर यह कहानी अब मिथ्या सिद्ध हो चुकी है। उसने इचिंग, बुडकट और पोट्रेट चित्र भी काफी संख्या में बनाए। उसकी निर्माण पद्धति और टेकनीक पर कोरेज्जिओ और रैफेल का प्रभाव द्रष्टव्य है।

सन्दर्भ

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  1. Oil on wood, diameter 24.4 cm; Kunsthistorisches Museum, Vienna.