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क्रिस्टलन

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हिम का क्रिस्टलन

प्राकृतिक या कृत्रिम विधि से ठोस क्रिस्टल निर्माण की क्रिया को क्रिस्टलन या क्रिस्टलीकरण कहते हैं। क्रिस्टलन के लिये विलयन का प्रयोग किया जाता है या कभी-कभी (बहुत कम) सीधे गैस से ही क्रिस्टल जमा लिये जाते हैं। क्रिस्टलन एक रासायनिक ठोस-द्रव विलगीकरण तकनीक है जिसमें विलेय, द्रव विलयन से स्थानान्तरित होकर शुद्ध ठोस पर चला जाता है। रासायनिक इंजीनियरी में क्रिस्टलन हेतु क्रिस्टलकारी का प्रयोग किया जाता है।

सिद्धान्त

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क्रिस्टलन विशेषकर उस स्थिति में यौगिक के शोधन की तकनीक है जब अभिक्रिया से प्राप्त मूल अपरिष्कृत पदार्थ अत्यन्त अशुद्ध हो। प्रक्रिया का प्रथम चरण एक ऐसे विलायक या विलायकों के मिश्रण को खोजना है जिसमें अपरिष्कृत पदार्थ गरम करने पर अच्छी तरह घुल जाता हो और शीतलन पर इसकी विलेयता अत्यन्त कम हो। अब अपरिष्कृत पदार्थ को उबलते हुए विलायक की न्यूनतम मात्रा में घोल लिया जाता है जिससे सन्तृप्त विलयन प्राप्त हो जाए। गरम विलयन का निस्यन्दन करके अविलेय अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है। क्रिस्टलीकरण बिन्दु जाँचने के पश्चात् इसे धीरे-धीरे शीतल होने दिया जाता है जिससे विलेय, घुलनशील अशुद्धियों के अधिकांश भाग को विलयन में छोड़कर क्रिस्टलित हो जाता है। क्रिस्टलों को निस्यन्दन द्वारा अलग कर लिया जाता है और प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक शुद्ध पदार्थ के क्रिस्टल प्राप्त न हो जाएँ। कभी-कभी आरम्भिक क्रिस्टलन के सुगमन हेतु, शीतलन समय विलयन में उस पदार्थ के अल्प क्रिस्टल डाल दिए जाते हैं जिसका शोधन किया जा रहा है। इसे बीजारोपण कहते हैं। डाला गया छोटा सा क्रिस्टल नए क्रिस्टलों की वृद्धि के लिए 'नाभिक' का कार्य करता है। क्रिस्टल की वृद्धि क्रिस्टलन की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। अच्छे क्रिस्टल प्राप्त करने हेतु, तुरन्त शीतलन से बचना चाहिए क्योंकि इससे क्षुद्र विकृत क्रिस्टल प्राप्त होते हैं। क्रिस्टलों की शुद्धता का परीक्षण कभी-कभी क्रिस्टलों के रंग से किया जाता है। उदाहरणार्थ, शुद्ध फिटकरी, कॉपर सल्फेट तथा बेंजोइक अम्ल के क्रिस्टल क्रमश: श्वेत, नीले और हरिताभ श्वेत रंग के होते हैं। अशुद्धियाँ क्रिस्टलों को रंग प्रदान करती हैं, अतः अशुद्ध क्रिस्टलों का रंग शुद्ध क्रिस्टलों से अलग होता है।

आवश्यक सामग्री

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  • बीकर (250 mL)
  • काच कीप
  • त्रिपाद धानी
  • पोर्सलीन प्याली
  • काच की छड़
  • बालूष्मक

प्रक्रिया

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  1. एक बीकर में 30-50 mL आसुत जल लें और इसमें कक्ष ताप पर फिटकरी/कॉपर सल्फेट का सन्तृप्त विलयन बनाने हेतु ठोस अशुद्ध नमूने को थोड़ा-थोड़ा डालते हुए विलोड़न द्वारा घोलते रहें। जब ठोस घुलना बन्द हो जाए तो इसे और अधिक न डालें। बेंजोइक अम्ल का सन्तृप्त विलयन बनाने हेतु उष्ण जल का प्रयोग करें।
  2. इस प्रकार निर्मित विलयन को निस्यन्दित करके निस्यन्द को पोर्सलीन प्याली में डाल लें। इसे बालूष्मक पर रखकर तब तक गरम करें जब तक विलायक का ¾ भाग वाष्पित न हो जाए। विलयन में एक काच की छड़ डुबोए और इसे बाहर निकाल कर मुँह से फूँक कर शुखाएँ, यदि काच की छड़ पर ठोस की हल्की परत बन जाए तो गरम करना बन्द कर दें।
  3. पोर्सलीन प्याली को घटिका काच से ढक कर सामग्री को बिना छुए शीतल होने दें।
  4. जब क्रिस्टल बन जाएँ तो मातृ द्रव (क्रिस्टलन के पश्चात बचा हुआ द्रव) का निस्तारण करें।
  5. इस प्रकार प्राप्त फिटकरी और कॉपर सल्फेट के क्रिस्टलों को पहले शीतल जल युक्त अल्कोहल की सूक्ष्म मात्रा से धोएँ जिससे चिपका हुआ मातृ द्रव निकल जाए और फिर आर्द्रता हटाने हेतु अल्कोहल से धोएँ। बेंजोइक अम्ल के क्रिस्टलों को ठंडे जल से धोएं। बेंजोइक अम्ल अल्कोहल में विलेय है। इसके क्रिस्टलों को अल्कोहल से न धोएँ।
  6. क्रिस्टलों को निस्यन्दक पत्र की स्तरों में रखकर शुखा लें।
  7. इस प्रकार क्रिस्टलों को सुरक्षित एवं शुष्क स्थान पर भण्डारित करें।
  8. शुद्ध पदार्थ की अधिकतम मात्रा प्राप्ति हेतु चरण (२) से (७) तक दोहराएँ।

सावधानियाँ

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  • सान्द्रित करते समय पूरा विलायक वाष्पित न करें।
  • शीतलन के समय विलयन को नहीं हिलाएँ।
  • धावन हेतु द्रव की पूर्ण मात्रा एक बार में प्रयोग न कर इसे तीन चार बार में प्रयोग करें।