कैर
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कैर Kair | |
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Not evaluated (IUCN 3.1)
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | सपुष्पक |
अश्रेणीत: | Eudicots |
अश्रेणीत: | Rosids |
गण: | Brassicales |
कुल: | Capparaceae |
वंश: | Capparis |
जाति: | C. decidua |
द्विपद नाम | |
Capparis decidua (Forssk.) Edgew. | |
पर्यायवाची | |
Capparis aphylla |
कैर एक मध्यम या छोटे आकार का पेड़ है। यह पेड़ ५ मीटर से बड़ा नहीं पाया जाता है। यह प्राय: सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह दक्षिण और मध्य एशिया, अफ्रीका और थार के मरुस्थल में मुख्य रूप से प्राकृतिक रूप में मिलता है। इसमें दो बार फ़ल लगते हैं: मई और अक्टूबर में। कैर के फलों को स्थानीय भाषा (बारमेर, जेसलमेर ,जोधपुर ,जालोर ,पाली, बलोतरा) में '' केरिया '' कहा जाता है इसके हरे फ़लों का प्रयोग सब्जी और आचार बनाने में किया जाता है। जब इसका फल जितना छोटा होता उतनी ही सब्जी स्वादिष्ट होती है, इसके सब्जी और आचार अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। पके लाल रंग के फ़ल खाने के काम आते हैं। हरे फ़ल को सुखाकर उनक उपयोग कढी बनाने में किया जता है। सूखे कैर फ़ल के चूर्ण को नमक के साथ लेने पर तत्काल पेट दर्द में आराम पहुंचाता है।
केर खासतौर पर मगरे(तालर) की जमीन में पाया जाता है, इस वनस्पति का पारिस्थितिकी संतुलन में अपना अमूल्य योगदान रहा है, जैव विविधता के सरंक्षण के तौर पर देखा जाए तो जहां केर पाए जाते हैं वहां कई छोटे- बड़े जीव जंतुओं का आसरा स्थल रहा हैं जैसे गिलहरी (तिलोतरी), खरगोश, लोमड़ी, हिरण, तीतर, मोर, सर्प(खासकर दो मुंहे सर्प), चूहे इत्यादि। केर वनस्पति में पत्तियों कांटो के रूप में पाई जाती है जिससे वाष्पोत्सर्जन बहुत कम होता है, यह पेड़ और झाड़ी दोनो रूपो में पाया जाता हैं, केर के फूलों को बाटा,फल को केरिया कहा जाता है, जिससे सब्जी और अचार बनाया जाता है, इसके फलों को पकने के बाद ढालू कहा जाता हैं ☺
केर की लकड़ी से घटी (आटा पिचाई की मशीन) का खील बनाया जाता है, "केर की लकड़ी को थार का चंदन, केरियो को मेवे कहा जाता है।"
बाजार में केरिया की रेट- 600\- रूपये प्रति किलोग्राम
कैर भारत में प्राय: राजस्थान राज्य में पाया जाता हैं। इसमें लाल रंग के फूल आते हैं इसके कच्चे फल की सब्जी बनती हैं जो राजस्थान में बहुत प्रचलित हैं। कैर के पक्के फलों को राजस्थान में स्थानीय भाषा ढालु कहते हैं ।
साहित्यिक उल्लेख
[संपादित करें]महाभारत में करीर का वर्णन पिलु और शमी के साथ किया गया है। महाभारत के कर्ण पर्व अध्याय ३० स्लोक १० में एक बाहीक जो कुरु-जांगल देश में अपनि पत्नी को याद करता है कि कब वह सतलज नदी पार कर जायेगा और शमी, पिलु और करीर के वनों में जौ के सत्तु के बने लड्डू का बिना पानी के दही के साथ स्वाद ले सकेगा।
- शमी पीलु करीराणां वनेषु सुखवर्त्मसु (śamī pīlu karīrāṇāṃ vaneṣu sukhavartmasu)
- अपूपान सक्तु पिण्डीश च खाथन्तॊ मदितान्विताः (apūpān saktu piṇḍīś ca khādanto mathitānvitāḥ)
राजस्थानी भाषा में कैर पर कहावतें प्रचलित हैं। कुछ कहावतें नीचे दी जा रही हैं:
- बैठणो छाया मैं हुओ भलां कैर ही, रहणो भायां मैं हुओ भलां बैर ही।
अर्थात बैठो छाया में चाहे कैर ही हो और रहो भाईयों के बीच चाहे बैर ही हो।
कैर के चित्र
[संपादित करें]-
बिना फ़ल के कैर वृक्ष
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फ़ल के साथ कैर वृक्ष
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कैर वृक्ष
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बिना पके कैर के फ़ल
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बिना पके कैर के फ़ल
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पके कैर के फ़ल
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पके कैर के फ़ल