Wp/mag/मागधी प्राकृत
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मागधीप्राकृत | |
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मागधी | |
ब्राह्मी: 𑀫𑀸𑀕𑀥𑀻 | |
बोलेके स्थान | भारत |
बिलुप्त | पूरुबी हिन्द-आर्यभाषामे बिकसित |
भाषापरिवार |
भारोपीय
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भाषासङ्केत | |
आइएसओ ६३९-३ | – |
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मागधी ऊ प्राकृतभाषाके नाम हे जे प्राचीनकालमे मगध प्रदेसमे प्रचलित हल । ई भाषाके उल्लेख महावीर आउ बुद्धके कालसे भेँटहे । जैन आगमके अनुसार तीर्थकर महावीरके उपदेश इहे भाषा अथवा एकरे रूपान्तर अर्धमागधी प्राकृतमे होवहल । पालि त्रिपिटकोमे भगवान् बुद्धके उपदेशके भाषाके मागधी कहल गेलहे ।
विशेषता
प्राकृत व्याकरणके अनुसार मागधी प्राकृतके तीन विशेष लक्षण हल--
- (१) र के स्थाने ल के उच्चारण, जैसे राजा > लाजा ;
- (२) स श ष ई तीनोके स्थाने श के उच्चारण, जैसे परुष > पुलिश, दासी > दाशी, यासि > याशि ;
- (३) अकारान्त शब्दके कर्ताकारक एकवचनके विभक्ति 'ए', जैसे नर > नले ।
- नाटकीय भाषाके उदाहरण; कधं अपावे चालुदत्ते वावादीअदि । हगे णिअलेण शामिणा बंधिदे । भोदु आक्कंडामी । शुणध ,अय्या ,शुणध । अस्ति दाणिं मए पावेण पवहण – पडिवत्तेण पुप्फ –कलंडय– यिण्णुय्याणं वशंतशेणा णीदा ।।
सम्राट अशोकके पूर्वय प्रदेशवर्ती कालसी आउ जौगढ़के धर्मलिपियोंमे पूर्वोक्त तीन लक्षणमे से प्रथम आउ तृतीय ई दूगो लक्षण प्रचुरतासे पाएल जाहे, किन्तु दोसरा न । जैनागम मे तीसरा प्रवृत्ति बहुलतासे पाएल जाहे, तथा प्रथम प्रवृति अल्पमात्रामे; दोसरा प्रवृत्ति हिँयो नै हे । इही चलते विद्वान अशोकके पूर्व प्रादेशीय लिपिके भाषाके जैन आगमके समान अर्धमागधी मानेके पक्षमे हथ । कुछ प्राचीनलेखमे, जैसे रागढ़ पर्वतश्रेणीके जोगीमारा गुफाके लेखमे, मागधीके उक्त तीनो प्रवृत्ति पर्याप्त रूपसे पाएल जाहे । किन्तु जौन पालि त्रिपिटकमे भगवान् बुद्धके उपदेशके भाषाके मागधी कहल गेलहे, ऊसभ ग्रन्थमे स्वयं कुछ अपवादके छोड़के मागधीके उक्त तीन लक्षणमे से कौनो नै भेँटै । एहिला पालिग्रन्थके आधारभूत भाषाके मागधी न मानके शौरसेनी माने दन्ने विद्वानके झुकाव हे ।
मगधीप्राकृतमे लिखल कौनो स्वतन्त्र साहित्य उपलब्ध नै हे, किन्तु खण्डश: ओकर उदाहरण हमनीके प्राकृत व्याकरण आउ सन्स्कृत नाटक जैसे शकुतन्ला, मुद्राराक्षस, मृच्छकटिक आदिमे भेँटहे । भरत नाट्यशास्त्रके अनुसार गङ्गासागर अर्थात् गङ्गासे लेके समुद्र तकके पूर्वीय प्रदेसमे एकारबहुल भाषाके प्रयोग कैल जायेके चाहि । ऊ कहलन हे कि राजाके अन्त:पुर निवासी मागधी बोलथन, तथा राजपुत्र सेठ चेट अर्धमागधी । मृच्छकटिकमे शकार, वसन्तसेना आउ चारुदत्त ई तीनोके चेटक, तथा संवाहक, भिक्षु आउ चारुदत्तके पुत्त ई छौ पात्र मागधी बोलहथ ।
सन्दर्भ ग्रन्थ
- पिशल कृत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद--प्राकृत भाषाओं का व्याकरण;
- दिनेशचन्द्र सरकार : ग्रामर ऑफ् द प्राकृत लॅङ्ग्वेज्;
- वूलवर् : इण्ट्रोडक्शन् टु प्राकृत
एहो देखी
बाहरी कड़ी
Archived 2008-05-07 at the वेबैक मशीन
Archived 2015-02-14 at the वेबैक मशीन
- An Illustrated Ardha-Magadhi Dictionary
- Jainism in Buddhist Literature
- प्रोफेसर महावीर सरन जैन का आलेख - साहित्यिक प्राकृतों (शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्द्ध-मागधी, पैशाची) को भिन्न भाषाएँ मानने की परम्परागत मान्यताः पुनर्विचार (हिन्दी)