हूण लोग
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हूण | |||||||||||||||||||||
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370 ई के दशक में–469 | |||||||||||||||||||||
सन ४५० ई में हूणों के अधिकार वाले क्षेत्र | |||||||||||||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | |||||||||||||||||||||
सरकार | जनजातीय परिसंघ | ||||||||||||||||||||
King or chief | |||||||||||||||||||||
• 370s? | Balamber? | ||||||||||||||||||||
• c. 395 – ? | Kursich and Basich | ||||||||||||||||||||
• c. 400–409 | Uldin | ||||||||||||||||||||
• c. 412 – ? | Charaton | ||||||||||||||||||||
• c. 420s–430 | Octar and Rugila | ||||||||||||||||||||
• 430–435 | Rugila | ||||||||||||||||||||
• 435–445 | Attila and Bleda | ||||||||||||||||||||
• 445–453 | Attila | ||||||||||||||||||||
• 453–469 | Dengizich and Ernak | ||||||||||||||||||||
• 469–? | Ernak | ||||||||||||||||||||
इतिहास | |||||||||||||||||||||
• Huns appear north-west of the Caspian Sea | pre 370s | ||||||||||||||||||||
• अलान और गोथ पर अधिकार | 370 ई के दशक में | ||||||||||||||||||||
437 | |||||||||||||||||||||
• Death of Bleda, Attila becomes sole ruler | 445 | ||||||||||||||||||||
451 | |||||||||||||||||||||
• Invasion of northern Italy | 452 | ||||||||||||||||||||
454 | |||||||||||||||||||||
• Dengizich, son of Attila, dies | 469 | ||||||||||||||||||||
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हूण वास्तव में तिब्बत की घाटियों में बसने वाली जाति थी जिसका मूल स्थान वोल्गा के पूर्व में था। वे ३७० ई में यूरोप में पहुँचे और वहाँ विशाल हूण साम्राज्य खड़ा किया। चीनी लोग इन्हें "ह्यून यू" अथवा "हून यू" कहते थे और भारतीय इन्हें 'हुना' कहते थे। कालान्तर में इसकी दो शाखाएँ बन गईं जिसमें से एक वोल्गा नदी के पास बस गई तथा दूसरी शाखा ने फारस (ईरान) पर आक्रमण किया और वहाँ के सासानी वंश के शासक फिरोज़ को मार कर राज्य स्थापित कर लिया।
हूणों का इतना भारी दल चलता था कि उस समय के बड़े बड़े सभ्य साम्राज्य उनका उवरोध नहीं कर सकते थे। चीन की ओर से हटाए गए हूण लोग तुर्किस्तान पर अधिकार करके सन् ४०० ई॰ से पहले वंक्षु नद (आवसस नदी) के किनारे आ बसे। यहाँ से उनकी एक शाखा ने तो योरप के रोम साम्राज्य की जड़ हिलाई और शेष फारस साम्राज्य में घुसकर लूटपाट करने लगे। पारसवाले इन्हें 'हैताल' कहते थे। कालिदास के समय में हूण वंक्षु के ही किनारे तक आए थे, भारतवर्ष के भीतर नहीं घुसे थे; क्योंकि रघु के दिग्विजय के वर्णन में कालिदास ने हूणों का उल्लेख वहीं पर किया है। कुछ आधुनिक प्रतियों में 'वंक्षु' के स्थान पर 'सिंधु' पाठ कर दिया गया है, पर वह ठीक नहीं। प्राचीन मिली हुई रघुवंश की प्रतियों में 'वंक्षु' ही पाठ पाया जाता है। वंक्षु नद के किनारे से जब हूण लोग फारस में बहुत अपद्रव करने लगे, तब फारस के प्रसिद्ध बादशाह बहराम गोर ने सन् ४२५ ई॰ में उन्हें पूर्ण रूप से परास्त करके वंक्षु नद के उस पार भगा दिया। पर बहराम गोर के पौत्र फीरोज के समय में हूणों का प्रभाव फारस में बढ़ा। वे धीरे-धीरे फारसी सभ्यता ग्रहण कर चुके थे और अपने नाम आदि फारसी ढंग के रखने लगे थे। फीरोज को हरानेवाले हूण बादशाह का नाम खुशनेवाज था।
जब फारस में हूण साम्राज्य स्थापित न हो सका, तब हूणों ने भारतवर्ष की ओर रुख किया। पहले उन्होंने सीमान्त प्रदेश कपिश और गांधार पर अधिकार किया, फिर मध्यदेश की ओर चढ़ाई पर चढ़ाई करने लगे। गुप्त सम्राट कुमारगुप्त इन्हीं चढ़ाइयों में मारा गया। इन चढ़ाइयों से तत्कालीन गुप्त साम्राज्य निर्बल पड़ने लगा। कुमारगुप्त के पुत्र महाराज स्कंदगुप्त बड़ी योग्यता और वीरता से जीवन भर हूणों से लड़ते रहे। सन् ४५७ ई॰ तक अन्तर्वेद, मगध आदि पर स्कंदगुप्त का अधिकार बराबर पाया जाता है। सन् ४६५ के उपरान्त हुण प्रबल पड़ने लगे और अन्त में स्कंदगुप्त हूणों के साथ युद्ध करने में मारे गए । सन् ४९९ ई॰ में हूणों के प्रतापी राजा तुरमान शाह (संस्कृत : तोरमाण) ने गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर पूर्ण अधिकार कर लिया। इस प्रकार गांधार, काश्मीर, पंजाब, राजपूताना, मालवा और काठियावाड़ उसके शासन में आए। तुरमान शाह या तोरमाण का पुत्र मिहिरगुल (संस्कृत : मिहिरकुल) बड़ा ही अत्याचारी और निर्दय हुआ। पहले वह बौद्ध था, पर पीछे कट्टर शैव हुआ। गुप्तवंशीय नरसिंहगुप्त और मालव के राजा यशोधर्मन् से उसने सन् ५३२ ई॰ मे गहरी हार खाई और अपना इधर का सारा राज्य छोड़कर वह काश्मीर भाग गया। हूणों में ये ही दो सम्राट् उल्लेख योग्य हुए। कहने की आवश्यकता नहीं कि हूण लोग कुछ और प्राचीन जातियों के समान धीरे-धीरे भारतीय सभ्यता में मिल गए ।
यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों का नेता अट्टिला (Attila) था। भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों को श्वेत हूण तथा यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों को अश्वेत हूण कहा गया। भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों के नेता क्रमशः तोरमाण व मिहिरकुल थे। तोरमाण ने स्कन्दगुप्त को शासन काल में भारत पर आक्रमण किया था।
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हूणों की उतपत्ति
[संपादित करें]इतिहासकारों की माने तो हूण उतपत्ति पर किसी के पास कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। इतिहासकार बताते हैं कि हूणों का उदय मध्य एशिया से हुआ, जहां से उनकी दो शाखा बनी। एक ने यूरोप पर आक्रमण किया तथा दूसरी ने ईरान से होते हुए भारत पर।
महाभारत के आदिपर्व 174 अध्याय के अनुसार जब ऋषि वसिष्ठ की नंदिनी (कामधेनु) गाय का राजा विश्वामित्र ने अपरहण करने का प्रयास किया, तब कामधेनु गाय ने क्रोध में आकर, अनेकों योद्धाओं को अपने शरीर से जन्म दिया। उसने अपनी पूंछ से बांरबार अंगार की भारी वर्षा करते हुए पूंछ से ही पह्लवों की सृष्टि की, थनों से द्रविडों और शकों को उत्पन्न किया, योनिदेश से यवनों और गोबर से बहुतेरे शबरों को जन्म दिया। कितने ही शबर उसके मूत्र से प्रकट हुए। उसके पार्श्वभाग से पौण्ड्र, किरात, यवन, सिंहल, बर्बर और खसों की सृष्टि की। इसी प्रकार उस गौ ने फेन से चिबुक, पुलिन्द, चीन, हूण, केरल आदि बहुत प्रकार के मलेच्छों की सृष्टि की।[3]
चित्र दीर्घा
[संपादित करें]-
एक हूण वस्त्र, जो घोड़े को सजाने के काम आता था
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वो मार्ग जिसके द्वारा हूण लोग यूरोप पहुंचे थे
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हूण प्याले, जिनसे उनके रहन सहन का पता लगता है