वयलर रामवर्मा
वयलार रामवर्मा വയലാർ രാമവർമ്മ | |
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पृष्ठभूमि | |
जन्म | 25 मार्च 1928 |
मूलस्थान | केरल, भारत |
निधन | 27 अक्टूबर 1975 | (उम्र 47 वर्ष)
पेशा | कवि और लेखक |
सक्रियता वर्ष | 1956–1975 |
वयलर रामवर्मा या वयलर राम वर्मा (25 मार्च 1928 – 27 अक्टूबर 1975) मलयालम भाषा के कवि थे। यह मुख्य रूप से वयलर के नाम से जाने जाते थे।[1]
कलम तलवार की अपेक्षा शक्ति- युक्त और तेज़ है। इसका उत्तम उदाहरण है- साहित्य। मलयालम साहित्य के एक युग पुरुष थे- वयलार रामवर्मा। वयलार रामवर्मा मलयालम के सुप्रसिद्ध गानरचयिता थे। उन्होंने मलयालम में अनेक मार्मिक कविताएँ लिखी है। वे कवि एवं समाज सुधारक थे। समाज में प्रचलित अधंविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए सदा ही उन्होंने अपनी कलम चलाई थी। वे आज भी जन हृदय में निर्भर है।
बचपन
[संपादित करें]प्रसिद्ध राजपरिवार के अंग वयलार रामवर्मा का जन्म २५ मार्च १९२८ को आलप्पुषा ज़िले में वयलार गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम वैराप्पिल्ली केरलवर्मा और माता का नाम वयलार राखवपरंबिल अंबालि तंपुराट्टी था। चेरत्तला उच्च विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा के बाद मामा और माँ की मदद से संस्कृत भी पढ़ा।
वयलार की कृतियों के बारे में
[संपादित करें]बचपन से ही वयलार रामवर्मा साहसपूर्ण कार्यों के लिए प्रसिद्ध रहे थे। वयलार में जन्म होने से वहाँ पर हुए मज़दूरों से संबंधित प्रश्नों पर वे भी सम्मिलित हुए। निर्धनों के लिए उनके मन में अगाध प्रेम था। मज़दूरों की उन्नति उनका स्वप्न था। कठिन परिश्रम करनेवालों के हृदय के थक-थक निनाद उनके अक्षरों को चैतन्य बनाया। पीड़ा से तडपते हृदयों में करुणा बहानेवाली कविताएँ उन्होंने लिखी थी। झूठ, अधिकारमोह, घमण्ड और अंधविश्वासों की निन्दा करने वाली थी उनकी अधिक कविताएँ। उनके गीतों में शहरी तथा ग्रामीण दोनों प्रकार के जीवन से वे पूर्णतः परिचित थे। उनकी रचनाओं में मज़दूर, किसान से लेकर जनसामान्य तक विविध रूप-रंगों में नज़र आते हैं। उन्होंने अपना जो स्थान रचयिता के क्षेत्र में बनाया है, उसमें उनके परिश्रम, लगन और प्रतिभा का ही हाथ है।
वे क्रांतिकारी कवि के नाम पर जाने जाते थे। लेकिन स्नेह पर निर्भर होती क्रांति वे चाहते थे। उनकी पहली कविता के विषय ही गाँधीभक्ति थी। समाज में प्रचलित जाति-भाँति और अंधविश्वासों को वे घोर विरोध करते थे। देवी विग्रह, परायुल्ल वरंब, तरवाडिन्टे मानं आदि कविताएँ इसका उदाहरण है।
अंधविश्वासों के खिलाफ होने के साथ-साथ ज़मीनदारों के बुरे व्यवहारों के बारे में भी उन्होंने अपनी कविताओं में वर्णन किया है। पुराने समाज में स्त्रियों का स्थान पुरुषों के नीचे था। उसे केवल काम करनेवाली समझती थी। लेकिन वयलार इनके खिलाफ थे। उनकी राय में स्त्रियों पुरुषों के बराबर है। उन्हें भी समाज में उच्च स्थान मिलना है। समाज में पुरुषों के समान स्त्रियों को भी समानरूप मिलने के लिए उन्होंने अपनी कलम चलाई। आईषा नामक खण्डकाव्य इसका उदाहरण है।
कवि और रचयिता के रूप में
[संपादित करें]मलयालम साहित्य के प्रसिद्ध कवि, लोकप्रिय सिनेमा, नाटक आदि गीतों के रचयिता 'वयलार' नाम से जाना जाता है। वयलार रामवर्मा कवि होने के साथ उत्कृष्ट रचयिता भी था। वयलार रामवर्मा को सर्गसंगीतम (१९६१) रचना को 'केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला। नेल्ल, अतिथि (१९७४) आदि फ़िल्म में उन्होंने प्रसिद्ध 'गानरचयिता' को 'राष्ट्रपति पुरस्कार' भी मिला गया। के. पी. ए. सी. के लिए किए बलिकुटीरङले... गीत बहुत प्रसिद्ध था। इसके अलावा उन्होंने २२३ मलयालम फ़िल्म के लिए लगभग २००० गीतों को लिखा। आधुनिक युग के सिनेमा वयलार के गीतों पर अडिग और अनंत है। वास्तव में उनकी मृत्यु छोटी आयु में हुई है। छोटी आयु में ही उन्होंने समाज की सभी कुरीतियों पर अपनी कलम चलाई है। इसके साथ ही साथ प्राकृतिक सौंदर्य पर भी अपनी आँखें चलाई हैं।
पारिवारिक जीवन
[संपादित करें]उनका विवाह भारती अम्मा के साथ हुआ था। प्रसिद्ध गान-रचयिता वयलार शरतचंन्द्रवर्मा ने उनके पुत्र और इंदुलेखा, यमुना, सिंधु पुत्री हैं। उनकी पत्नी ने उन्हें काफ़ी सहयोग दिया। उनकी पत्नी भारती अम्मा उनके बारे में इंद्रधनुष तीरत्त नामक रचना की।
वयलार रामवर्मा की रचनाएँ
[संपादित करें]कविताएँ
[संपादित करें]- पादमुद्रकल (१९४८)
- कोन्तयुं पूणूलुं
- एनिक्कु मरणमिल्ला (१९५५)
- मुलन्काडु (१९५५)
- ओरु युदास जनिक्कुन्नू (१९५५)
- सर्गसंगीतम (१९६१)
- अश्वमेध
- ताडका
खण्डकाव्य
[संपादित करें]- आयिषा
कहानी
[संपादित करें]- रक्तम कलरन्न मण्ण
- वेट्टुम तिरुत्तुम्म
निबंध
[संपादित करें]- पुरुषान्दरङलीलूटे
- रोसादलङलुम कुप्पिच्चिल्लुकलुम
अन्य रचना
[संपादित करें]- वयलार कृति
- वयलार कविता
पुरस्कार
[संपादित करें]केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार
[संपादित करें]- १९६१ - सर्गसंगीतम
देशीय फ़िल्म पुरस्कार
[संपादित करें]- १९७३ - प्रमुख रचयिता (मनुष्य मतङले सृष्टिच्चु - अच्चनुम बाप्पयुम)
केरल फ़िल्म पुरस्कार
[संपादित करें]- १९६९ - प्रमुख गानरचयिता
- १९७२ - प्रमुख गानरचयिता
- १९७४ - प्रमुख गानरचयिता
- १९७५ - प्रमुख गानरचयिता
चीन विरुद्ध भाषण
[संपादित करें]राजनीति में वयलारजी प्रारंभ में कम्युनिस्ट विभाग में सक्रिय रहे। उन्होंने राजनैतिक दृष्टि से सशक्त करने एवं सामाजिक दृष्टि से मज़दूरों को ऊँचा उठाने में बहुत ज़्यादा योगदान दिया। वयलार ने समाज और राजनीति में उच्च आदर्शों, नैतिक मूल्यों एवं आचरण की परंपराओं का निर्वाह किया।
१९६२ अक्तूबर २७ को उन्होंने चीन के विरुद्ध भाषण किया। कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के लगभग दो वर्ष के पहले सोलहवीं शहीद सभा में चीनों के विरुद्ध कठिन आवाज़ उडाया। मधुर मनोहर मनोज्ञ चीन.... इस प्रकार आरंभित पंक्ति को चैनीस पक्षपात प्रचरण के समय हो कुटिला कुतन्त्र भयकर चीन.... के रूप में वयलार ने बदल दिया। युद्ध के समय होने के कारण चीन पक्ष नेताओं ने चीन को अनुकूल या प्रतिकूल करने का तैयार नहीं किया। भाषण के बाद कुछ लोगों ने अधिक प्रोत्साहन किया और कुछ निस्तब्ध होकर बैठ गया।
उपसंहार के रूप में
[संपादित करें]जन्मजात कवित्व असामान्य रचना कुशलता, सौंदर्यबोध आदि से मलयालम कवियों को नया भाव देने वाले अनुग्रहीत कवि मलयालम कविता के रूप भावों को बदलनेवाले आधुनिक कवित्रयों में एक थे वयलार रामवर्मा। केरल के लोग और कैरली को दुख सागर में डुबाकर १९७५ अक्तूबर २७ में उस प्रतिभा की मृत्यु हुई। प्रतिवर्ष २७ अक्तूबर (उनकी मृत्यु दिवस) मलयालम साहित्य के लिए वयलार पुरस्कार से विभूषित कर अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की। कम शब्दों में हम कह सकते हैं कि वयलार ने केवल अपनी पत्नी को नहीं, मलयालम साहित्य को भी 'विधवा' बना दिया है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जुलाई 2015.