भ्रमरगीत सार
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(भ्रमरगीतसार से अनुप्रेषित)
भ्रमरगीत सार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित महाकवि सूरदास के पदों का संग्रह है। उन्होने सूरसागर के भ्रमरगीत से लगभग 400 पदों को छांटकर उनको 'भ्रमरगीत सार' के रूप में प्रकाशित कराया था।
पद अनुक्रम
[संपादित करें]इस पुस्तक में संग्रहित पद क्रमानुसार निम्नलिकित हैं:
- १-पहिले करि परनाम नंद सों समाचार सब दीजो
- २ कहियो नन्द कठोर भए
- ३ तबहिं उपंगसुत आय गए
- ४-हरि गोकुल की प्रीति चलाई
- ५-जदुपति लख्यो तेहि मुसकात
- ६-सखा! सुनो मेरी इक बात
- ७-उद्धव! यह मन निस्चय जानो
- ८-उद्धव! बेगि ही ब्रज जाहु
- ९-पथिक! सँदेसो कहियो जाय
- १०-नीके रहियो जसुमति मैया
- ११-उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो
- १२-सुनियो एक सँदेसो ऊधो तुम गोकुल को जात
- १३-कोऊ आवत है तन स्याम
- १४-है कोई वैसीई अनुहारि
- १५-देखो नंदद्वार रथ ठाढ़ो
- १६-कहौ कहाँ तें आए हौ
- १७-ऊधो को उपदेस सुनौ किन कान दै
- १८-हमसों कहत कौन की बातें
- १९-तू अलि! कासों कहत बनाय
- २०-हम तो नंदघोष की वासी
- २१-गोकुल सबै गोपाल-उपासी
- २२-जीवन मुँहचाही को नीको
- २३-आयो घोष बड़ो ब्योपारी
- २४-जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहैं
- २५-आए जोग सिखावन पाँड़े
- २६-ए अलि! कहा जोग में नीको
- २७-हमरे कौन जोग ब्रत साधै
- २८-हम तो दुहूं भाँति फल पायो
- २९-पूरनता इन नयन न पूरी
- ३०-हमतें हरि कबहूँ न उदास
- ३१-तेरो बुरो न कोऊ मानै
- ३२-घर ही के बाढ़े रावरे
- ३३-स्याममुख देखे ही परतीति
- ३४-लरिकाई को प्रेम, कहौ अलि, कैसे करिकै छूटत
- ३५-अटपटि बात तिहारी ऊधो सुनै सो ऐसी को है
- ३६-बरु वै कुब्जा भलो कियो
- ३७-हरि काहे के अंतर्यामी
- ३८-बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे
- ३९-अपने स्वारथ को सब कोऊ
- ४०-तुम जो कहत सँदेसो आनि
- ४१-हम तौ कान्ह केलि की भूखी
- ४२-अँखिया हरि-दरसन की भूखी
सन्दर्भ
[संपादित करें]"भ्रमरगीतसार" संपादक आचार्य रामचंद्रशुक्ल, उप संपादक विश्वनाथ प्रसाद मिश्र (नागरी प्रचारिणी ग्रंथमाला-83,वाराणसी नई दिल्ली कविशिरोमणि महात्मा सूरदासकृत)
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]अन्य विकि परियोजनाओं में
[संपादित करें]विकिस्रोत पर इस लेख से संबंधित मूल पाठ उपलब्ध है: |
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- भ्रमरगीत-सार:विकिस्रोत पर पढ़ें।