अफ़शारी राजवंश
अफ़शारी राजवंश سلسله افشاریان सिलसिला अफ़शारियान | |||||
राजशाही | |||||
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ध्वज | |||||
नादिर शाह के अधीन अफ़शारी राजवंश का सर्वाधिक विस्तार
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राजधानी | मशहद | ||||
भाषाएँ | फ़ारसी (सरकारी व प्रशासनिक) तुर्की (सैनिक) | ||||
धार्मिक समूह | अस्पष्ट धार्मिक नीति पहले शिया रुझान बाद के काल में सुन्नी रुझान | ||||
शासन | पूर्ण बादशाही | ||||
शाह | |||||
- | १७३६-१७४७ | नादिर शाह (प्रथम) | |||
- | १७४८-१७९६ | शाहरुख़ अफ़शार (अंतिम) | |||
ऐतिहासिक युग | आरम्भिक आधुनिक | ||||
- | स्थापित | १७३६ | |||
- | अंत | १७९८ | |||
आज इन देशों का हिस्सा है: | ईरान पाकिस्तान भारत इराक तुर्की तुर्कमेनिस्तान | ||||
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अफ़शारी राजवंश (سلسله افشاریان, सिलसिला अफ़शारियान) १८वीं सदी ईसवी में तुर्क-मूल का ईरान में केन्द्रित राजवंश था। इसके शासक मध्य एशिया के ऐतिहासिक ख़ोरासान क्षेत्र से आये अफ़शार तुर्की क़बीले के सदस्य थे। अफ़शारी राजवंश की स्थापना सन् १७३६ ई में युद्ध में निपुण नादिर शाह ने करी जिसनें उस समय राज कर रहे सफ़वी राजवंश से सत्ता छीन ली और स्वयं को शहनशाह-ए-ईरान घोषित कर लिया हालांकि वह ईरानी मूल का नहीं था। उसके राज में ईरान सासानी साम्राज्य के बाद के अपने सबसे बड़े विस्तार पर पहुँचा। उसका राज उत्तर भारत से लेकर जॉर्जिया तक फैला हुआ था।[1]
नादिर शाह और भारत
[संपादित करें]भारत में नादिर शाह अपने सन् १७३९ के हमले के लिये जाना जाता है जब उसने अपने से छह गुना बड़ी मुग़ल साम्राज्य की सेना को हराया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया। लूटपाट में २२ मार्च १७३९ के एक ही दिन में दिल्ली के ३०,००० से अधिक निहत्थे नागरिक मारे गये और जाते-जाते वह प्रसिद्ध मोर सिंहासन (तख़्त-ए-ताऊस) अपने साथ दिल्ली से तेहरान ले गया।[2] मई में जब नादिर शाह की सेना वापस ईरान लौटी, उन्होंने भारत से इतना पैसा, सोना, रत्न, हाथी, घोड़े व अन्य सामान लूट लिया था कि ईरान में तीन वर्षों तक कर और लगान माफ़ कर दिया गया।[3]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Elton L. Daniel, "The History of Iran" (Greenwood Press 2000) p. 94
- ↑ "An Outline of the History of Persia During the Last Two Centuries (A.D. 1722-1922) Archived 2016-03-04 at the वेबैक मशीन". Edward G. Browne. London: Packard Humanities Institute. p. 33. Retrieved 2010-09-24.
- ↑ Axworthy, Michael (2006). The Sword of Persia. I.B. Tauris. pp.1–16, 175–210. ISBN 1-84511-982-7.