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"सर्वार्थसिद्धि": अवतरणों में अंतर

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दिन, वार, तिथि, नक्षत्र से प्रतिदिन बनने वाले ज्योतिष योगों से दुर्भाग्य को भगाकर, भाग्य को जगा सकते हैं। जाने amrutam ज्योतिष के विचित्र रहस्य
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ज्योतिष रत्नाकर ग्रंथ के अनुसार 64 मुख्य सिद्ध और शुभ योगों का उल्लेख है। जिसमें रवि पुष्य और गुरु पुष्य अत्याधिक प्रसिद्ध योगों में से एक हैं।

अमृतम पत्रिका, ग्वालियर के मुख्य संपादक श्री अशोक गुप्ता द्वारा लिखा गया यह ज्योतिष लेख बहुत सरल भाषा में है।
अमृतम पत्रिका द्वारा प्रकाशित कालसर्प विशेषांक भी एक रोचक और रहस्यमय खोज है। इसे अशोकजी ने 25 साल की मेहनत से 195 प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों का अध्ययन का सन 2004 में प्रकाशित किया था और सबसे आश्चर्य की बात यह है की अमृतम का यह कालसर्प विशेषांक की मात्र 5 महीने में 70 हजार कॉपी विक्रय हो गई थीं।
आज यह विशेषांक कही भी ढूढने से नहीं मिलता।
इस अमृतम कालसर्प में राहु केतु के इतने सरल उपाय बताए थे कि लोगों को चमत्कारी रूप से फायदा हुआ था।
2006 से 2016 तक अम्रुतम का प्रकाशन हर महीने होता था। अब यह ऑनलाइन विकिपीडिया पर पढ़ सकते हैं।

ज्योतिष चिंतामणि के मुताबिक सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, पुष्कर योग, द्विपुष्कर योग और त्रिपुष्कर योग भी विशेष फलदाई होते हैं।
स्कंध पुराण के हिसाब से जब कोई व्यक्ति शुभाशुभ योगों में किसी भी कार्य का आरंभ करता है, तो उसकी सफलता निश्चित और स्थिर मानी जाती है।

ग्रह प्रवेश योग, विवाह योगों की भी ज्योतिष शास्त्रों में की गई है।

ज्योतिष काल गणना के अनुसार किसी योग, कुयोग का निर्माण नक्षत्र, तिथि, वार के हिसाब से होता है। ध्यान रखें भारतीय संस्कृति में कोई भी वार सूर्योदय से आरंभ होकर दूसरे दिन सूर्योदय के पूर्व टीके होता है।
उदाहरण के लिए मान लो आज सोमवार है, तो ये दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय तक रहेगा। वार कभी भी अंग्रेजी तारीख के साथ रात को 12 बजे नहीं बदलता।

ज्योतिष में वार तो सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक माना जाता है। परन्तु तिथि व नक्षत्र का समाप्ति काल दिन अथवा रात्रि में भिन्न-भिन्न हो सकता है।

अतः ये दोनों योग उतनी ही देर के लिए होते हैं जितनी देर तीनों सम्बन्धित कालांगों का साथ ठहराव हो । पंचांगों में ऐसे योगों का प्रारम्भिक व समाप्ति काल दिन है।

सुयोग क्या होते हैं – ये योग या सुयोग सदेव शुभ होते हैं जिनमें शुभ कार्य प्रारम्भ करने से सफलता एवं लाभ प्राप्त होते हैं।

भारत के लगभग सभी पंचागों में सिद्धि योग प्रत्येक माह में दिए जाते हैं ।

(i) सिद्धि योग केसे बनता है –वार, तिथि तथा नक्षत्रों के सम्मिश्रण से निम्न प्रकार योग की रचना होती है ।

(क) रविवार के दिन अष्टमी तिथि हो तथा अश्विनी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तराषाढ़, धनिष्ठा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने पर सिद्ध योग निर्मित होता है।

(ख) सोमवार को नवमी या दशमी तिथि तथा रोहिणी, मृगशिर, पुष्य, श्रवण या शतभिषा नक्षत्र होने पर।

(ग) मंगलवार को तृतीया, अष्टमी या त्रयोदशी तिथि तथा अश्विनी, मृगशिर आश्लेषा, मूल या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने पर ।

(घ) बुधवार को द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी तिथि तथा कृतिका, रोहिणी, मृगशिर या अनुराधा नक्षत्र होने पर।

(ड.) गुरुवार को पंचमी, दशमी या पूर्णिमा तिथि तथा अश्विनी, पुनर्वसु पुष्य, विशाखा, अनुराधा या रेवती नक्षत्र होने पर।

(च) शुक्रवार को प्रतिपदा, षष्टी या एकादशी तिथि तथा अश्विनी, पुनवसु, चित्रा, श्रवण, पूर्वा भाद्रपद या रेवती नक्षत्र होने पर।

(छ) शनिवार को चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी तिथि तथा रोहिणी, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, स्वाति या श्रवण नक्षत्र होने पर ।


अमृत सिद्धि योग क्या होता है और केसे बनता है, इस योग से क्या लाभ हानि हैं।–
निम्न वारों व नक्षत्रों के संयोग से अमृत सिद्धि योग की रचना होती है, जो सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम है। परन्तु अमृत सिद्धि योग के दिन 'दुष्ट तिथि' हो तो यह योग नष्ट होकर 'त्रितयत' नामक विष योग बन जाता है, जो सभी शुभ कार्यों के लिए वर्जित है। प्रत्येक वार नक्षत्र युग्म के साथ दुष्ट तिथि का उल्लेख किया जा रहा है।

(क) रविवार को हस्त नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु पंचमी तिथि भी हो, तो अशुभ।

(ख) सोमवार को मृगशिर नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु षष्ठी तिथि भी हो तो अशुभ।

(ग) मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु सप्तमी तिथि भी हो तो अशुभ रहता है।

(घ) बुधवार को अनुराधा नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु अष्टमी तिथि भी हो तो अशुभ।

(ड.) गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि भी हो तो अशुभ।

(च) शुक्रवार को रेवती नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि भी हो तो अशुभ।

(छ) शनिवार को रोहिणी नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु एकादशी तिथि भी हो तो अशुभ।

अतः इस योग का उपयोग करते समय तिथि का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। दुष्ट तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों को अमृत सिद्धि योग पूर्ण शुभ फलदायक होता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग के फायदे और किस दिन निर्मित होता है —
जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह योग सर्व प्रकार से अर्थ-सिद्धि प्रदान करने वाला योग है । यह योग निम्न वारों व नक्षत्रों के संयोग से बनता है। परन्तु इसमें भी दुष्ट तिथियां आ जाने से सर्वार्थ सिद्धि योग नष्ट हो जाता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग
सर्वार्थ सिद्ध योग कुल योग 34 होते हैं।

रविवार को अश्विनी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर यह योग बनता है लेकिन इस दिन प्रतिपदा या तृतीया तिथि हो, तो ये योगनाशक दुष्ट तिथियां हैं।

सोमवार के दिन रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है, परंतु अगर इस दिन द्वितीया या एकादशी हो, तो ये योग हानिकारक फल देता है।
मंगलवार को अश्विनी, कृतिका, आश्लेषा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र हो, लेकिन तृतीया, नवमी या द्वादशी ये तीनों तिथियां न हों, तो सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है।

बुधवार को यदि कृतिका, रोहिणी, मृगशिर, हस्त, अनुराधा नक्षत्र हो तो ये योग बनता है किन्तु सप्तमी, नवमी या एकादशी होने पर ये योग का नाश हो जाता है।

गुरुवार अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, अनुराधा, रेवती ये नक्षत्र जब भी ब्रहतिवार को इस दिन कोई भी तिथि होने पर पड़ें, तो सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है।

शुक्रवार अश्विनी, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण, रेवती नक्षत्र किसी भी तिथि पर हों, तो सर्वार्थ सिद्धि योग कहलाता है।

शनिवार रोहिणी, स्वाति, श्रवण नक्षत्र होने पर ये योग बनता है। लेकिन इसी दिन अगर एकादशी व त्रयोदशी
तिथियां योगनाशक दुष्ट तिथियां हैं।

गुरुवार व शुक्रवार को सर्वार्थ सिद्धि योग को नष्ट करने वाली कोई दुष्ट तिथि नहीं होती।

कुमार योग—यह शुभ योग है । यह योग निम्न तिथियों, वारों तथा नक्षत्रों के संयोग से बनता है। ।

1. सोमवार, मंगलवार, बुधवार या शुक्रवार को
प्रतिपदा पंचमी, षष्ठी, दशमी या एकादशी इनमें से कोई भी एक तिथि हो और
अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, हस्त, विशाखा
मूल, श्रवण या पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र

उपरोक्त में से किसी भी तिथि, वार एवं नक्षत्र के संयोग से कुमार योग की रचना हो सकती है, अतः ऐसे 180 समूह बन सकते हैं।
उक्त कुमार योग में मैत्री करना, शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करना, गृह प्रवेश तथा व्रत आदि रखना शुभ होता है।

ज्योतिष में राजयोग क्या होते हैं? – राजयोग निम्नलिखित तिथियों, वार एवं नक्षत्रों के संयोग से
बनता है।

तिथि द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, द्वादशी या पूर्णिमा

वार रविवार, मंगलवार, बुधवार या शुक्रवार

नक्षत्र भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वा फाल्गुनी, चित्रा अनुराधा, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा या उत्तराभाद्रपद

उपरोक्त में से किसी भी तिथि, वार एवं नक्षत्र के संयोग से राजयोग क रचना हो सकती है, अतः ऐसे 180 समूह बन सकते हैं। राजयोग मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों के लिए शुभ होता है ।

गुरु पुष्य योग यह ज्योतिष का बहुत प्रसिद्ध महूर्त है— जैसा कि नाम से स्पष्ट है, गुरुवार को यदि पुष्य नक्षत्र हो, तो गुरु पुष्य योग घटित होता है। विद्यारम्भ, व्यापार प्रारम्भ गृह प्रवेश एक अन्य शुभ कार्यों के लिए गुरु पुष्य योग अत्यन्त शुभ होता है।
गुरु पुख योग वैश्य या बनियों के लिए बहुत ही लाभकारी रहता है। ब्राह्मणों को ये अनिष्कारक होता है।

(vii) रवि पुष्य योग – क्षत्रि और ब्राह्मण जाति के लिए अति शुभ और श्रेष्ठ रहता है। इस योग में मंत्रों की सिद्धि तुरंत होती है। अगर रविवार के दिन गोचर में या पंचांग में चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में हो, तो
रवि पुष या रवि पुष्य नक्षत्र निर्मित होता है।
यदि रविवार को पुष्य नक्षत्र हो तो रवि पुष्य योग होता है। रवि पुष्य योग शुभ कार्यों के लिए उपयोगी है। मन्त्रादि साधन के लिए भी यह श्रेयस्कर है।

पुष्कर योग– सूर्य विशाखा नक्षत्र में हो तथा चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में, तो ऐसा संयोग ‘पुष्कर योग' कहलाता है।

पुष्कर योग' शुभ योग अत्यन्त दुर्लभ है। सूर्य एक नक्षत्र में 13-14 दिन पूरे वर्ष में केवल एक बार रहता है । विशाखा नक्षत्र में सूर्य लगभग 6 नवम्बर से 19 नवम्बर तक रहता है । यह आवश्यक नहीं कि उन्हीं दिनों में चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में आए । इसलिए इस योग के लिए अनेक वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यह योग अत्यन्त शुभ माना जाता है ।

रवि योग – रवि योग अत्यन्त शक्तिशाली शुभ योग है । इस योग के दिन यदि तेरह प्रकार के कुयोग में से कोई भी कुयोग हो तो रवि योग उस कुयोग की अशुभता नष्ट कर शुभ कार्यों के प्रारम्भ करने हेतु मार्ग प्रशस्त करता है।

रवि योग निम्न स्थिति में घटित होता है।

"सूर्याधिष्ठित नक्षत्र से चौथे, छठे, दसवें, तेरहवें अथवा बीसवें नक्षत्र में यदि चन्द्रमा हो तो उस दिन रवि योग घटित होता है।

उदाहरण के लिए यदि सूर्य पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के
द्वितीय चरण में हो और चन्द्रमा चित्रा 14 ( पू० फा० से चौथा ), विशाखा 16 ( पू० फा० से छठा ), पूर्वाषाढ़ 20 ( पू० फा० से दसवां), धनिष्ठा 23 ( पू० फा० से तेरहवां ) अथवा कृतिका 3 ( पू० फा० से बीसवां ) नक्षत्र में हो तो रवि योग घटित होता है ।

यदि किसी दिन किसी प्रकार के कुयोग के कारण कोई शुभ कार्य प्रारम्भ नहीं किया जा सके तो विद्वज्जन रवि योग के आधार पर उस शुभ कार्य को प्रारम्भ करवाते हैं।

कुयोग क्या है?इसके नुकसान– वार, तिथि एवं नक्षत्रों के संयोग से अथवा केवल नक्षत्र के आधार पर कुछ ऐसे अशुभ योग बनते हैं जिन्हें 'कुयोग' कहा जा सकता है। इन कुयोगों में कोई शुभ कार्य प्रारम्भ किया जाए तो वह सफल नहीं होता अपितु उसमें हानि, कष्ट एवं भारी संकट का सामना करना पड़ता है ।

कुयोग सुयोग–यदि किन्हीं कारणों से एक कुयोग तथा एक सुयोग एक ही दिन पड़ जाए तो सुयोग कुयोग को नष्ट कर शुभ फलदायक हो जाता है।

सर्वप्रथम कुछ ऐसे कुयोग दिए जा रहे हैं हैं परन्तु विशेष अशुभ होने से स्पष्ट रूप से परिभाषित किए जा रहे हैं।


: ज्योतिष में रवि पुष्य, गुरु पुष्य तथा सिद्धि योग क्या होता है और ये केसे बनता है, इसके फायदे क्या हैं। amrutam




'''सर्वार्थसिद्धि''' एक प्रख्यात [[जैन ग्रंथ|जैन ग्रन्थ]] हैं। यह आचार्य [[पूज्यपाद]] द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ [[तत्त्वार्थ सूत्र|तत्त्वार्थसूत्र]] पर लिखी गयी टीका हैं।{{साँचा:Sfn|Jain|2014|p=xiv}}<ref>{{साँचा:Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=cnxjAAAAMAAJ|title=Prolegomena to Prakritica et Jainica|author1=Banerjee|first1=Satya Ranjan|year=2005|p=151}}</ref> इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है।
'''सर्वार्थसिद्धि''' एक प्रख्यात [[जैन ग्रंथ|जैन ग्रन्थ]] हैं। यह आचार्य [[पूज्यपाद]] द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ [[तत्त्वार्थ सूत्र|तत्त्वार्थसूत्र]] पर लिखी गयी टीका हैं।{{साँचा:Sfn|Jain|2014|p=xiv}}<ref>{{साँचा:Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=cnxjAAAAMAAJ|title=Prolegomena to Prakritica et Jainica|author1=Banerjee|first1=Satya Ranjan|year=2005|p=151}}</ref> इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है।



15:01, 1 सितंबर 2022 का अवतरण

ज्योतिष रत्नाकर ग्रंथ के अनुसार 64 मुख्य सिद्ध और शुभ योगों का उल्लेख है। जिसमें रवि पुष्य और गुरु पुष्य अत्याधिक प्रसिद्ध योगों में से एक हैं।

अमृतम पत्रिका, ग्वालियर के मुख्य संपादक श्री अशोक गुप्ता द्वारा लिखा गया यह ज्योतिष लेख बहुत सरल भाषा में है। अमृतम पत्रिका द्वारा प्रकाशित कालसर्प विशेषांक भी एक रोचक और रहस्यमय खोज है। इसे अशोकजी ने 25 साल की मेहनत से 195 प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों का अध्ययन का सन 2004 में प्रकाशित किया था और सबसे आश्चर्य की बात यह है की अमृतम का यह कालसर्प विशेषांक की मात्र 5 महीने में 70 हजार कॉपी विक्रय हो गई थीं। आज यह विशेषांक कही भी ढूढने से नहीं मिलता। इस अमृतम कालसर्प में राहु केतु के इतने सरल उपाय बताए थे कि लोगों को चमत्कारी रूप से फायदा हुआ था। 2006 से 2016 तक अम्रुतम का प्रकाशन हर महीने होता था। अब यह ऑनलाइन विकिपीडिया पर पढ़ सकते हैं।

ज्योतिष चिंतामणि के मुताबिक सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, पुष्कर योग, द्विपुष्कर योग और त्रिपुष्कर योग भी विशेष फलदाई होते हैं। स्कंध पुराण के हिसाब से जब कोई व्यक्ति शुभाशुभ योगों में किसी भी कार्य का आरंभ करता है, तो उसकी सफलता निश्चित और स्थिर मानी जाती है।

ग्रह प्रवेश योग, विवाह योगों की भी ज्योतिष शास्त्रों में की गई है।

ज्योतिष काल गणना के अनुसार किसी योग, कुयोग का निर्माण नक्षत्र, तिथि, वार के हिसाब से होता है। ध्यान रखें भारतीय संस्कृति में कोई भी वार सूर्योदय से आरंभ होकर दूसरे दिन सूर्योदय के पूर्व टीके होता है।

उदाहरण के लिए मान लो आज सोमवार है, तो ये दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय तक रहेगा। वार कभी भी अंग्रेजी तारीख के साथ रात को 12 बजे नहीं बदलता।

ज्योतिष में वार तो सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक माना जाता है। परन्तु तिथि व नक्षत्र का समाप्ति काल दिन अथवा रात्रि में भिन्न-भिन्न हो सकता है।

अतः ये दोनों योग उतनी ही देर के लिए होते हैं जितनी देर तीनों सम्बन्धित कालांगों का साथ ठहराव हो । पंचांगों में ऐसे योगों का प्रारम्भिक व समाप्ति काल दिन है।

सुयोग क्या होते हैं – ये योग या सुयोग सदेव शुभ होते हैं जिनमें शुभ कार्य प्रारम्भ करने से सफलता एवं लाभ प्राप्त होते हैं।

भारत के लगभग सभी पंचागों में सिद्धि योग प्रत्येक माह में दिए जाते हैं ।

(i) सिद्धि योग केसे बनता है –वार, तिथि तथा नक्षत्रों के सम्मिश्रण से निम्न प्रकार योग की रचना होती है ।

(क) रविवार के दिन अष्टमी तिथि हो तथा अश्विनी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तराषाढ़, धनिष्ठा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने पर सिद्ध योग निर्मित होता है।

(ख) सोमवार को नवमी या दशमी तिथि तथा रोहिणी, मृगशिर, पुष्य, श्रवण या शतभिषा नक्षत्र होने पर।

(ग) मंगलवार को तृतीया, अष्टमी या त्रयोदशी तिथि तथा अश्विनी, मृगशिर आश्लेषा, मूल या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने पर ।

(घ) बुधवार को द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी तिथि तथा कृतिका, रोहिणी, मृगशिर या अनुराधा नक्षत्र होने पर।

(ड.) गुरुवार को पंचमी, दशमी या पूर्णिमा तिथि तथा अश्विनी, पुनर्वसु पुष्य, विशाखा, अनुराधा या रेवती नक्षत्र होने पर।

(च) शुक्रवार को प्रतिपदा, षष्टी या एकादशी तिथि तथा अश्विनी, पुनवसु, चित्रा, श्रवण, पूर्वा भाद्रपद या रेवती नक्षत्र होने पर।

(छ) शनिवार को चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी तिथि तथा रोहिणी, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, स्वाति या श्रवण नक्षत्र होने पर ।


अमृत सिद्धि योग क्या होता है और केसे बनता है, इस योग से क्या लाभ हानि हैं।– निम्न वारों व नक्षत्रों के संयोग से अमृत सिद्धि योग की रचना होती है, जो सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम है। परन्तु अमृत सिद्धि योग के दिन 'दुष्ट तिथि' हो तो यह योग नष्ट होकर 'त्रितयत' नामक विष योग बन जाता है, जो सभी शुभ कार्यों के लिए वर्जित है। प्रत्येक वार नक्षत्र युग्म के साथ दुष्ट तिथि का उल्लेख किया जा रहा है।

(क) रविवार को हस्त नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु पंचमी तिथि भी हो, तो अशुभ।

(ख) सोमवार को मृगशिर नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु षष्ठी तिथि भी हो तो अशुभ।

(ग) मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु सप्तमी तिथि भी हो तो अशुभ रहता है।

(घ) बुधवार को अनुराधा नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु अष्टमी तिथि भी हो तो अशुभ।

(ड.) गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि भी हो तो अशुभ।

(च) शुक्रवार को रेवती नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि भी हो तो अशुभ।

(छ) शनिवार को रोहिणी नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु एकादशी तिथि भी हो तो अशुभ।

अतः इस योग का उपयोग करते समय तिथि का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। दुष्ट तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों को अमृत सिद्धि योग पूर्ण शुभ फलदायक होता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग के फायदे और किस दिन निर्मित होता है —

जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह योग सर्व प्रकार से अर्थ-सिद्धि प्रदान करने वाला योग है । यह योग निम्न वारों व नक्षत्रों के संयोग से बनता है। परन्तु इसमें भी दुष्ट तिथियां आ जाने से सर्वार्थ सिद्धि योग नष्ट हो जाता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग सर्वार्थ सिद्ध योग कुल योग 34 होते हैं।

रविवार को अश्विनी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर यह योग बनता है लेकिन इस दिन प्रतिपदा या तृतीया तिथि हो, तो ये योगनाशक दुष्ट तिथियां हैं।

सोमवार के दिन रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है, परंतु अगर इस दिन द्वितीया या एकादशी हो, तो ये योग हानिकारक फल देता है।

मंगलवार को अश्विनी, कृतिका, आश्लेषा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र हो, लेकिन तृतीया, नवमी या द्वादशी ये तीनों तिथियां न हों, तो सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है।

बुधवार को यदि कृतिका, रोहिणी, मृगशिर, हस्त, अनुराधा नक्षत्र हो तो ये योग बनता है किन्तु सप्तमी, नवमी या एकादशी होने पर ये योग का नाश हो जाता है।

गुरुवार अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, अनुराधा, रेवती ये नक्षत्र जब भी ब्रहतिवार को इस दिन कोई भी तिथि होने पर पड़ें, तो सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है।

शुक्रवार अश्विनी, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण, रेवती नक्षत्र किसी भी तिथि पर हों, तो सर्वार्थ सिद्धि योग कहलाता है।

शनिवार रोहिणी, स्वाति, श्रवण नक्षत्र होने पर ये योग बनता है। लेकिन इसी दिन अगर एकादशी व त्रयोदशी तिथियां योगनाशक दुष्ट तिथियां हैं।

गुरुवार व शुक्रवार को सर्वार्थ सिद्धि योग को नष्ट करने वाली कोई दुष्ट तिथि नहीं होती।

कुमार योग—यह शुभ योग है । यह योग निम्न तिथियों, वारों तथा नक्षत्रों के संयोग से बनता है। ।

1. सोमवार, मंगलवार, बुधवार या शुक्रवार को प्रतिपदा पंचमी, षष्ठी, दशमी या एकादशी इनमें से कोई भी एक तिथि हो और अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, हस्त, विशाखा मूल, श्रवण या पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र

 उपरोक्त में से किसी भी तिथि, वार एवं नक्षत्र के संयोग से कुमार योग की रचना हो सकती है, अतः ऐसे 180 समूह बन सकते हैं। 

उक्त कुमार योग में मैत्री करना, शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करना, गृह प्रवेश तथा व्रत आदि रखना शुभ होता है।

ज्योतिष में राजयोग क्या होते हैं? – राजयोग निम्नलिखित तिथियों, वार एवं नक्षत्रों के संयोग से बनता है।

तिथि द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, द्वादशी या पूर्णिमा

वार रविवार, मंगलवार, बुधवार या शुक्रवार

नक्षत्र भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वा फाल्गुनी, चित्रा अनुराधा, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा या उत्तराभाद्रपद

उपरोक्त में से किसी भी तिथि, वार एवं नक्षत्र के संयोग से राजयोग क रचना हो सकती है, अतः ऐसे 180 समूह बन सकते हैं। राजयोग मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों के लिए शुभ होता है ।

गुरु पुष्य योग यह ज्योतिष का बहुत प्रसिद्ध महूर्त है— जैसा कि नाम से स्पष्ट है, गुरुवार को यदि पुष्य नक्षत्र हो, तो गुरु पुष्य योग घटित होता है। विद्यारम्भ, व्यापार प्रारम्भ गृह प्रवेश एक अन्य शुभ कार्यों के लिए गुरु पुष्य योग अत्यन्त शुभ होता है। 

गुरु पुख योग वैश्य या बनियों के लिए बहुत ही लाभकारी रहता है। ब्राह्मणों को ये अनिष्कारक होता है।

(vii) रवि पुष्य योग – क्षत्रि और ब्राह्मण जाति के लिए अति शुभ और श्रेष्ठ रहता है। इस योग में मंत्रों की सिद्धि तुरंत होती है। अगर रविवार के दिन गोचर में या पंचांग में चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में हो, तो रवि पुष या रवि पुष्य नक्षत्र निर्मित होता है।

यदि रविवार को पुष्य नक्षत्र हो तो रवि पुष्य योग होता है। रवि पुष्य योग शुभ कार्यों के लिए उपयोगी है। मन्त्रादि साधन के लिए भी यह श्रेयस्कर है।

पुष्कर योग– सूर्य विशाखा नक्षत्र में हो तथा चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में, तो ऐसा संयोग ‘पुष्कर योग' कहलाता है।

पुष्कर योग' शुभ योग अत्यन्त दुर्लभ है। सूर्य एक नक्षत्र में 13-14 दिन पूरे वर्ष में केवल एक बार रहता है । विशाखा नक्षत्र में सूर्य लगभग 6 नवम्बर से 19 नवम्बर तक रहता है । यह आवश्यक नहीं कि उन्हीं दिनों में चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में आए । इसलिए इस योग के लिए अनेक वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यह योग अत्यन्त शुभ माना जाता है ।

रवि योग – रवि योग अत्यन्त शक्तिशाली शुभ योग है । इस योग के दिन यदि तेरह प्रकार के कुयोग में से कोई भी कुयोग हो तो रवि योग उस कुयोग की अशुभता नष्ट कर शुभ कार्यों के प्रारम्भ करने हेतु मार्ग प्रशस्त करता है।

रवि योग निम्न स्थिति में घटित होता है।

"सूर्याधिष्ठित नक्षत्र से चौथे, छठे, दसवें, तेरहवें अथवा बीसवें नक्षत्र में यदि चन्द्रमा हो तो उस दिन रवि योग घटित होता है।

उदाहरण के लिए यदि सूर्य पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में हो और चन्द्रमा चित्रा 14 ( पू० फा० से चौथा ), विशाखा 16 ( पू० फा० से छठा ), पूर्वाषाढ़ 20 ( पू० फा० से दसवां), धनिष्ठा 23 ( पू० फा० से तेरहवां ) अथवा कृतिका 3 ( पू० फा० से बीसवां ) नक्षत्र में हो तो रवि योग घटित होता है ।

यदि किसी दिन किसी प्रकार के कुयोग के कारण कोई शुभ कार्य प्रारम्भ नहीं किया जा सके तो विद्वज्जन रवि योग के आधार पर उस शुभ कार्य को प्रारम्भ करवाते हैं।

कुयोग क्या है?इसके नुकसान– वार, तिथि एवं नक्षत्रों के संयोग से अथवा केवल नक्षत्र के आधार पर कुछ ऐसे अशुभ योग बनते हैं जिन्हें 'कुयोग' कहा जा सकता है। इन कुयोगों में कोई शुभ कार्य प्रारम्भ किया जाए तो वह सफल नहीं होता अपितु उसमें हानि, कष्ट एवं भारी संकट का सामना करना पड़ता है ।

कुयोग सुयोग–यदि किन्हीं कारणों से एक कुयोग तथा एक सुयोग एक ही दिन पड़ जाए तो सुयोग कुयोग को नष्ट कर शुभ फलदायक हो जाता है।

सर्वप्रथम कुछ ऐसे कुयोग दिए जा रहे हैं हैं परन्तु विशेष अशुभ होने से स्पष्ट रूप से परिभाषित किए जा रहे हैं।


ज्योतिष में रवि पुष्य, गुरु पुष्य तथा सिद्धि योग क्या होता है और ये केसे बनता है, इसके फायदे क्या हैं। amrutam



सर्वार्थसिद्धि एक प्रख्यात जैन ग्रन्थ हैं। यह आचार्य पूज्यपाद द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी गयी टीका हैं।[1][2] इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है।

लेखक 

ग्रन्थ के लेखक आचार्य पूज्यपाद, एक दिगम्बर साधु थे। पूज्यपाद एक कवी, दार्शनिक और आयुर्वेद के गहन ज्ञाता थे।[3]

विषय 

सर्वप्रथम ग्रन्थ में तत्त्वार्थसूत्र के मंगलाचरण का अर्थ समझाया गया है। सर्वार्थसिद्धि के दस अध्याय हैं :[4]

  1. दर्शन और ज्ञान
  2. जीव के भेद
  3. उर्ध लोक और मध्य लोक
  4. देव
  5. अजीव के भेद
  6. आस्रव
  7. पाँच व्रत
  8. कर्म बन्ध
  9. निर्जरा
  10. मोक्ष

अंग्रेजी अनुवाद

सर्वार्थसिद्धि का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद प्रोफ़ेसर स.अ. जैन ने किया था।

References

  1. Jain 2014, पृ॰ xiv.
  2. Banerjee, Satya Ranjan (2005). Prolegomena to Prakritica et Jainica. पृ॰ 151.
  3. Indian Journal of the History of Medicine. 1956. पृ॰ 25.
  4. S.A. Jain 1992, पृ॰ vi-vii.

Sources