"मोतीलाल नेहरू": अवतरणों में अंतर
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मोतीलाल नेहरु बेहद मंहगे नामी वकील थे वकालत छोड़कर उन्होंने राजनीति शुरु की और अपने रसूख से कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने परंतु उन्हें लगा कि उनके जीवनकाल में आजादी नहीं मिल पायेगी तो उन्होंने गांधी जी से वचन लिया कि वे नेहरु को ही आजादी के बाद देश का नेतृत्व प्रदान करेंगे । |
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नेहरू बहुत बुरी हार हुई । इससे गांधी जी को बेहद निराशा हुई और उन्होंने पटेल से त्यागपत्र देने को कहा और गांधी जी ने मोतीलाल नेहरु के अहसानों का वास्ते पद त्याग करने को तैयार कर लिया। जबकि नेहरु ने कांग्रेस द्वारा नेता न बनाने पर दूसरी पार्टी बनाकर प्रधानमंत्री बनने की धमकी भी गांधी जी को दे दी थी अंतोत्गत्वा नेहरु को ही नेता मान लिया गया। |
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और नेहरु ही बाद में छल से प्रधानमंत्री बन बैठा । |
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जयहिंद |
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जी ने भी उन्हें निराश नहीं किया और कहा कि उनके रहते कोई और देश का नेतृत्व नहीं करेगा केवल नेहरु ही इसके लिए अिकृत किए जायेंगे । और हुआ भी यही आजादी की तारीख नजदीक आते ही कांग्रेस में नेता पद का चुनाव हुआ सरदार पटेल नेता चुन लिए गये। |
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{{भारतीय स्वतंत्रता संग्राम}} |
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12:30, 23 सितंबर 2018 का अवतरण
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मोतीलाल नेहरू (जन्म: 6 मई 1861 – मृत्यु: 6 फ़रवरी 1931) इलाहाबाद के एक मशहूर वकील थे। वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं में से थे।
1928 से लेकर 1929 तक पूरे दो वर्ष तक वे काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।I'm
जीवनी
मोतीलाल नेहरू का जन्म आगरा में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर था। वह पश्चिमी ढँग की शिक्षा पाने वाले प्रथम पीढ़ी के गिने-चुने भारतीयों में से थे। वह इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में शिक्षित हुए किन्तु बी०ए० की अन्तिम परीक्षा नहीं दे पाये। बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज से "बार ऐट लॉ" की उपाधि ली और अंग्रेजी न्यायालयों में वकील के रूप में कार्य प्रारम्भ किया।
मोतीलाल नेहरू की पत्नी का नाम स्वरूप रानी था। जवाहरलाल नेहरू उनके एकमात्र पुत्र थे। उनके दो कन्याएँ भी थीं। उनकी बडी बेटी का नाम विजयलक्ष्मी था, जो आगे चलकर विजयलक्ष्मी पण्डित के नाम से मशहूर हुई। उनकी छोटी बेटी का नाम कृष्णा था। जो बाद में कृष्णा हठीसिंह कहलायीं।
लेकिन आगे चलकर उन्होंने अपनी वकालत छोडकर भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में कार्य किया था। 1923 में उन्होने देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काँग्रेस पार्टी से अलग होकर अपनी स्वराज पार्टी की स्थापना की। 1928 में कोलकाता में हुए काँग्रेस अधिवेशन के वे अध्यक्ष चुने गये। 1928 में काँग्रेस द्वारा स्थापित भारतीय संविधान आयोग के भी वे अध्यक्ष बने। इसी आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की थी।
मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में एक अलीशान मकान बनबाया और उसका नाम आनन्द भवन रखा। इसके बाद उन्होंने अपना पुराना वाला घर स्वराज भवन काँग्रेस पार्टी को दे दिया।
मोतीलाल नेहरू का 1931 में इलाहाबाद में निधन हुआ।
नेहरू परिवार के दिल्ली में सबसे पहले पूर्वज राज कौल थे।