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! '''Provincial animal'''
| Sindh ibex
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! '''Provincial bird'''
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सिन्ध का नाम 'सप्त सैन्धव' था जहां सिन्धु सहित शतद्रु, विपाशा, चन्द्रभागा, वितस्ता, परुष्णी और सरस्वती बहती थीं। सिन्धु के तीन अर्थ हैं- सिन्धु नदी, समुद्र और सामान्य नदियां। [[ऋग्वेद]] कहता है ''मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः''। कालान्तर में इस भूभाग से सप्त सिन्धव लुप्त होकर सिन्ध रह गया है, जो खण्डित भारत यानी पाकिस्तान का सिन्ध प्रदेश है।
 
ईसा के 1500 साल पहले भारतीय (तथा ईरानी) क्षेत्रों में आर्यों का अगमन आरंभ हुआ। आर्य भारत के कई हिस्सोंभागों में बस गए। ईरान में भी आर्यों की बस्तियां फैलने लगीं। भारतीय स्रोतों में सिन्ध का नाम ''सिंध'', ''सिंधु'', ''सिंधुदेश'' तथा ''सिंधुस्थान'' जैसे शब्दों के रूप में हुआ है।
 
700 ईस्वी में हिन्दू ब्रााहृण [[दाहिर (राजा)|राजा दाहरदाहिर सैन]] सिन्ध के शासक थे। उनके स्वर्णयुग राजा [[दाहिर के(राजा)|दाहिर]] समय समुद्री लुटेरों का बड़ा आतंक था। वो समुद्री लुटेरेने समुद्र के रास्तेसे व्यापार करने वाले सभी व्यापारियोंअरबियों को लूटा लियाऔर करते थे। अरबसिन्ध में उसअन्य समय हज्जाज बिन युसूफ का राज चलता था वो उस समय के खलिफा का खास आदमी था। इस्लामिक मजहब कि स्थापना करने वाले पैगम्बर मोहम्मद के वंशजो का वो धुर विरोधी था। उसके भयलोगों से उनकेलूट वंशजोकरते नेथे। राजा[[खलीफा]] दाहिरकी के यँहा शरण ली। राजा दाहिर ने सनातन धर्म के आदर्शो पर चलते हुए, शरणागत लोगों कि रक्षा का वचन दी। हज्जाज बिन युसूफ तो पहले हिओर से समुद्री लुटेरों से परेशान था परंतु अब उसे सिंध पर आक्रमण करने का बहाना मिल गया और उसने अपने रिस्तेदार मोहम्मदमुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिंधसिन्ध परमें हमलाअरबी करने के लिए एक विशाल सेना भेजी। सिंध मे पलने वाले गद्दारोंसैनिकों ने मोहम्मदआक्रमण बिनकिया कासिमऔर काविजय साथप्राप्त दियाकी। औरउनसे युद्ध करते हुए राजा दाहिर मोहम्मदको पैगम्बरखत्म केकिया वंशजोऔर किअपने शुरक्षाफंसे करते हुए वीरगतिकैदियों को प्राप्तछुड़ाया हुए। सिन्ध में अरब घुस आया। दाहरदाहिर की रानी वीर बाला ने अधूरे युद्ध को हवा दी। युद्ध छिड़ गया। रानी ने अरबों के खिलाफ प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग किया। रानी जीत गई। इसके बाद सिन्ध में [[इस्लाम]] की घुसपैठ शुरू हो गई। अधिसंख्यक हिन्दू इस्लामी तौर तरीकों के चलते मुसलमान हुए। उस समय सिन्ध के दलित वर्ग के लोग छुआछूत, भेदभाव और सामाजिक अवमानना से खिन्न होकर इस्लाम में आ गए क्योंकि यहां के बड़े लोग अपने से कम वर्ग के लोगों से छुआछूत करते थे इसलिए इस्लामी तरीके को देखते देखते ब्राह्मण दाहरदाहिर के पुत्र जयसिंह भी मुसलमान हो गए। यदि हिन्दू राजाओं ने जयसिंह की सहायता की होती तो वे मतान्तरित न होते। भयाक्रांतता के चलते हिन्दू इस्लाम को मानने के बारे में जानकर हुए या कुछ लोग कहते हैं मजबूर हुए। राजनीतिक अलगाववादी नीति के चलते मतान्तरित मुसलमान मुख्यधारा से आज तक जुट न पाए। ब्राह्मणवाद इस्लामवाद हो गया। अरबी बहुत दिनों तक सिन्ध में रहे और अपने अलग रवैये और व्यवहार के जरिए हिन्दुओं को इस्लाम में लाते रहे। मतान्तरित मुसलमान नारियां भी हिन्दुओं के इस्लामीकरण का काम करने लगी थीं। सिन्ध से लेकर ब्लूचिस्तान तक जितने कबीले, जनजातियां, शोषित, पीड़ित और दलित वर्ग के लोग थे, उनके पुरखे हिन्दू थे। उनकी निर्धनता, अशिक्षा पिछड़ापन और मजबूरी को ध्यान में रखकर अरबों ने उन्हें लगा के मुसलमानो में बराबरी छुआ छूत कम है और वो मुसलमान बन गए। इस प्रकार सिन्ध के हिन्दुओं में फूट, आपसी कलह और भेदभाव के चलते अन्तत: वे मतान्तरित हुए। धीरे-धीरे सिन्ध में मुसलमान अधिसंख्यक हो गए और बचे खुचे हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए। अब अल्पसंख्यक हिन्दू सिन्ध प्रान्त में इस्लाम की ओर झुक रहे हैं।
 
सिन्ध में अनेक गरीब [[जाट]] वर्ग के लोगों ने भी इस्लाम को मान लिया था। देश के हिन्दू राजाओं में आपसी मनमुटाव, प्रतिद्वन्द्विता और शत्रुत्रा थी। वे हिन्दुओं को क्या बचा पाते? आज भी देश में अधिसंख्यक हिन्दुओं में पारस्परिक एकता का अभाव है। देश में जात-पांत का बोलबाला है। अनेक जातिवादी घटक हैं। दलगत नीतियों का वर्चस्व है। ऐसी ही भयावह स्थिति 700 ईस्वी में सिन्ध में थी। देश की इन दुर्बलताओं से अरबी लुटेरों और आक्रान्ताओं ने लाभ उठाया। उन दिनों सिन्ध में इस्लामीकरण का अभियान था। "इस्लाम के तरीकों को देखकर हताश जनता ने इस्लाम ही कबूल लिया और उन्हें सहानुभूति मिली। ऐसा ही मुगलकाल में भी हुआ था।
सिन्ध से हम हिन्दू हुए हैं। वरुण देवता झूलेलाल के अनुयायी हिन्दू अपने को सिन्धी कहते हैं। दाहरदाहिर सिन्धी थे। पाक अधिकृत सिन्ध प्रान्त के वर्तमान मुसलमानों के पुरखे हिन्दू थे, यानी सिन्धी।
 
सिन्ध की संस्कृति सिन्धु संस्कृति के नाम से जानी जाती है। सप्त सैन्धव संस्कृति आर्य संस्कृति है वह वैदिक ललित पुष्प है। उसकी गन्ध सनातन और शाश्वत है।